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आप्तवाणी-१
दृष्टिराग के क्या लक्षण हैं? वीतरागता का एक भी लक्षण नहीं, वह। जिसे दृष्टिराग होता है, उसे हमारी बात समझ में नहीं आती। बाकी कैसा भी अनपढ़ हो, तो भी उसे हमारी बात समझ में आ जाती है।
दृष्टिराग तो राग का भी राग है। उसे तो जड़ से ही निकाल दें, तभी सत्य समझ में आए।
बैरभाव
प्रश्नकर्ता : यदि साँप काटने आए, तो क्या हमें उसे नहीं मारना चाहिए?
दादाश्री : पर हम ही पीछे हट जाएँ न। यदि ट्रेन सामने से आती हो, तब क्या करोगे? उसी तरह, हट जाना।
साँप तो पंचेन्द्रिय जीव है। उसे यदि मारें तो वह बैर बाँधता है। उसे पता चलता है कि मुझे बिना गुनाह के मार रहे हैं। फिर अगले जन्म में वह हमें ही मारता है।
बैर से ही सारा संसार खड़ा है न? अरे, इस चींटी को भी ऐसा होता है कि यदि मेरे पास शक्ति होती, तो मैं तुझे ही सताती। यह खटमल भी बत्ती जलाने पर त्रस्त होकर भाग जाता है, भयभीत हो जाता है. कि मुझे मार डालेंगे। साथ-साथ उसे ऐसा भी होता है कि मैं अपना भोजन खाता हूँ, उसमें मुझे क्यों मारते हैं? वह जो रक्त पीता है, वह भी उसके ऋणानुबंध का ही है।
दो प्रकार के बंधन हैं। एक बैरभाव का, दूसरा प्रेमभाव का। प्रेमभाव में पूज्यभाव होता है। यह संसार बैर से ही बंधा हुआ है। स्नेह तो चिपकनेवाले, चिपचिपे स्वभाव का है, वह सूख जाता है। बैर नहीं जाता। दिन-दिन बढ़ता जाता है।
संसार-सागर के स्पंदन संसार-सागर परमाणुओं का सागर है। उसमें स्पंदन खड़े होते हैं,
तब मौजें उत्पन्न होती हैं और वे मौजें फिर दूसरों से टकराती हैं। इससे फिर दूसरे में भी स्पंदन खड़े होते हैं और फिर तूफ़ान शुरू होता है। यह सब परमाणुओं में से ही उपजता है। आत्मा उनमें तन्मयाकार हो जाए, तो स्पंदन ज़ोरों में शुरू होते हैं।
इस दुनिया में भी सागर जैसा ही है। एक भी स्पंदन उठा, तो अनेकों प्रति स्पंदन उठते हैं। सारा संसार स्पंदन का बना हुआ है। सभी तरह के सभी स्पंदन सच्चे हैं और तालबद्ध सुनाई देते हैं।
किसी बावड़ी के पास जाकर तू अंदर मुँह डालकर जोर से चिल्लाए कि तू चोर है, तो बावड़ी में से क्या जवाब आएगा? 'त् चोर हैं।' तू कहे कि तू राजा है, तो बावड़ी भी कहेगी, कि तू राजा है।और 'तू महाराजा है', ऐसा कहे तो बावड़ी 'तू महाराजा है' ऐसे जवाब देगी। वैसे ही यह जगत् बावड़ी जैसा है। तू जैसा कहेगा वैसे स्पंदन उठेंगे। 'एक्शन एन्ड रिक्शएन आर इक्वल एन्ड ऑपोजिट' ऐसा नियम है। इसलिए आपको पसंद हों, वैसे स्पंदन डालना। सामनेवाले को चोर कहा, तो तुझे भी 'तू चोर है' ऐसा सुनना पड़ेगा और 'राजा है', ऐसा सामनेवाले को कहेगा, तो तुझे 'राजा है', ऐसा सुनने को मिलेगा। हमने तो तुझे परिणाम बताए, पर स्पंदन पैदा करना तेरे हाथ की बात है। इसलिए तुझे अनुकूल आए, वैसा स्पंदन डालना।
___ हम पत्थर नहीं डालें, तो हममें स्पंदन नहीं उठते और सामनेवाले में भी तरंगे नहीं उठतीं और हमें भी कोई असर नहीं पहुँचता। पर क्या हो? सभी स्पंदन करते ही हैं। कोई छोटा तो कोई बड़ा स्पंदन करता है। कोई कंकड़ डालता है, तो कोई ढेला डालता है। ऊपर से फिर स्पंदन के साथ अज्ञान है, इसलिए बहुत ही फँसाव है। ज्ञान हो और फिर स्पंदन हों, तो हर्ज नहीं। भगवान ने कहा है कि स्पंदन मत करना। पर लोग बिना स्पंदन किए रहते ही नहीं न? देह के स्पंदनों में हर्ज नहीं है, पर वाणी और मन के स्पंदनों की मुश्किल है। इसलिए इन्हें तो बंद ही कर देना चाहिए, यदि सुख से रहना चाहो तो, जहाँ-जहाँ पत्थर फेंके हैं, वहाँवहाँ स्पंदन उठने ही वाले हैं। स्पंदन बहुत इकट्ठे हों, तब उन्हें भुगतने