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________________ अहिंसा अहिंसा प्रयाण, 'अहिंसा परमोधर्म' की ओर प्रश्नकर्ता : 'अहिंसा के मार्ग पर धार्मिक-अध्यात्मिक उन्नति' इस विषय पर समझाइए। दादाश्री : अहिंसा, वही धर्म है और अहिंसा वही अध्यात्म की उन्नति है। पर अहिंसा मतलब 'मन-वचन-काया से किसी भी जीव को किंचितमात्र दु:ख न हो' उस जानपने में रहना चाहिए, श्रद्धा में रहना चाहिए, तब वह हो सकता है। प्रश्नकर्ता : 'अहिंसा परमोधर्म' - यह मंत्र जीवन में किस तरह काम आता है? दादाश्री : वह तो सुबह पहले बाहर निकलते समय 'मन-वचनकाया से किसी भी जीव को किंचित् मात्र दुःख न हो' ऐसी पाँच बार भावना करके और फिर निकलना चाहिए। फिर किसी को दु:ख हो गया हो, उसे याद रखकर उसका पश्चाताप करना चाहिए। प्रश्नकर्ता : किसी को भी दुःख नहीं दें, वैसा जीवन इस काल में किस तरह जीया जा सकता है? दादाश्री : वैसा आपको भाव ही रखना है और वैसा जतन करना चाहिए। जतन नहीं हो सके उसका पश्चाताप करना। प्रश्नकर्ता : अपने आसपास संबंधित जीवों में से किसी जीव को दु:ख न हो, वैसा जीवन संभव है क्या? हमारे आसपास में हर एक जीव को हर एक संयोग में संतोष दिया जा सकता है? दादाश्री : जिसे ऐसा देने की इच्छा है, वह सबकुछ कर सकता है। एक जन्म में सिद्ध नहीं होगा, तो दो-तीन जन्मों में भी सिद्ध होगा ही! आपका ध्येय निश्चित होना चाहिए, लक्ष्य ही होना चाहिए, तो सिद्ध हुए बगैर रहता ही नहीं। ____टले हिंसा, अहिंसा से... प्रश्नकर्ता : हिंसा रोकने के लिए क्या करना चाहिए? दादाश्री : निरंतर अहिंसकभाव उत्पन्न करने चाहिए। मुझे लोग कहते हैं कि, 'हिंसा और अहिंसा कब तक पालनी?' मैंने कहा, 'हिंसा और अहिंसा का भेद महावीर भगवान डालकर ही गए हैं।' वे जानते थे कि बाद में दूषमकाल आनेवाला है। भगवान क्या नहीं जानते थे कि हिंसा किसे कहनी और हिंसा किसे नहीं कहनी? भगवान महावीर क्या कहते हैं कि हिंसा के सामने अहिंसा रखो। सामनेवाला मनुष्य हिंसा का हथियार काम में ले तो हम अहिंसा का हथियार काम में लें, तो सुख आएगा। नहीं तो हिंसा से हिंसा कभी भी बंद होनेवाली नहीं है। अहिंसा से हिंसा बंद होगी। समझ, अहिंसा की प्रश्नकर्ता : लोग हिंसा की तरफ बहुत जा रहे हैं, तो अहिंसा की तरफ मोड़ने के लिए क्या करना चाहिए? दादाश्री : हमें उन्हें समझाना चाहिए। समझाएँ तो अहिंसा की तरफ मुड़ेंगे कि 'भाई, इसमें, ये जीव मात्र में भगवान रहे हुए हैं। इसलिए आप जीवों को मारोगे तो उन्हें बहुत दुःख होगा, उसका आपको दोष लगेगा और उससे आपको आवरण आएँगे और भयंकर अधोगति में जाना पड़ेगा।' ऐसा समझाएँ तो ढंग से चलेंगे। जीवहिंसा से तो बुद्धि भी बिगड़ जाती है। ऐसा किसी को समझाते हो? प्रश्नकर्ता : परन्तु अहिंसा पालने के प्रति अपनी पक्की भावना हो, परन्तु कुछ व्यक्ति उसमें बिलकुल नहीं मानते हों तो क्या करना चाहिए?
SR No.009573
Book TitleAhimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages59
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size36 KB
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