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अहिंसा
जिम्मेदारी किसकी? अब ज्ञानी पुरुष यदि संपूर्ण अहिंसक नहीं हों, तो ज्ञानी कहलाए ही कैसे? संपूर्ण अहिंसक मतलब हिंसा के सागर में भी संपूर्ण अहिंसक। वे ज्ञानी !! उन्हें किंचित् मात्र भी हिंसा नहीं लगती। फिर हमें वे लोग कहते हैं कि, 'आपकी पुस्तक हमने पढ़ी, बहुत आनंद देनेवाली है और अविरोधाभासी लगती है, पर आपका वर्तन विरोधाभासवाला लगता है।' मैंने कहा, 'कौन-सा वर्तन विरोधाभासवाला लगता है?' तब कहते हैं, 'आप गाड़ी में घूमते हैं वह।' मैंने कहा, 'आपको समझाऊँ, भगवान ने शास्त्र में क्या कहा है, वह पहले समझाता हूँ, फिर आप न्याय करना।' तब कहते हैं, 'क्या कहा है शास्त्र में?' मैंने कहा, 'आत्मस्वरूप, ऐसे ज्ञानी पुरुष की जिम्मेदारी कितनी है?! ज्ञानी पुरुष को देह का मालिकीपना नहीं होता। देह का मालिकीपना उन्होंने फाड़ दिया है। यानी कि इस पुद्गल का मालिकीपन उन्होंने फाड़ दिया है इसलिए खुद इसके मालिक नहीं है। और मालिकीपना नहीं होने से उन्हें दोष लगता नहीं है। दूसरा, ज्ञानी पुरुष को त्याग संभवे नहीं।' तब कहते हैं, 'वह मालिकीपन का मुझे समझ में नहीं आया।' तब मैंने कहा, 'आपको ऐसा किसलिए लगता है कि मझसे हिंसा हो जाएगी?' तब कहे, 'मेरे पैर के नीचे जीव आ जाए तो मुझसे हिंसा हुई कहलाए न?' इसलिए मैंने कहा, 'यह पैर आपका है, इसलिए हिंसा होती है। जब कि यह पैर मेरा नहीं है। इस देह को आज आपको
जो करना हो वह कर सकते हो। इस देह का मैं मालिक नहीं।' फिर कहते हैं, 'यह मालिकीपना, और न-मालिकीपना किसे कहना चाहिए, वह हमें बताइए।' तब मैंने कहा, 'मैं आपको उदाहरण देकर समझाता हूँ।'
अहिंसा पूछवाया कि इसका ओनर कौन है? तब लोगों ने कहा कि यह तो लक्ष्मीचंद सेठ का है। फिर फौजदार ने पूछा कि वे कहाँ रहते हैं? तब पता चला कि उस जगह पर रहते है। इसलिए पुलिसवाले को भेजा कि लक्ष्मीचंद सेठ को पकड़कर लाओ। पुलिसवाले लक्ष्मीचंद सेठ के पास गए। तब लक्ष्मीचंद सेठ ने कहा कि भाई, यह जगह मेरी है, ऐसा आप कहते हो वह ठीक है, पर मैंने तो पंद्रह दिन पहले ही बेच दी है। आज मैं इस जमीन का मालिक नहीं हूँ। तब उन्होंने पूछा कि किसे बेची है वह कहो। आप उसका सबूत दिखाओ। फिर सेठ ने सबूत की नकल दिखाई। उस नकल को देखकर उन लोगों ने जिसने यह जगह खरीदी थी उसके पास गए। उन्हें कहते हैं कि भाई यह जगह आपने खरीदी है? तब उसने कहा कि हाँ, मैंने ली है। पुलिसवाले ने कहा कि आपकी ज़मीन में से ऐसा निकला है। तब वह कहता है, पर मैंने तो यह जमीन पंद्रह दिन पहले ही ली है। और यह माल तो बरसात से पहले का दबाया हुआ लगता है, उसमें मेरा क्या गुनाह? तब पुलिसवाला कहता है कि वह हमें देखना नहीं है। 'हू इज द ओनर नाउ? आज कौन मालिक है?' आज मालिकीपन नहीं तो जोखिमदारी नहीं। मालिक हो तो जोखिम है।"
तब वे लोग समझ गए। यदि पंद्रह दिन पहले ही लिया तब भी जोखिमदार हुआ न? बाकी, ऐसे बुद्धि से देखने जाएँ तो वह बरसात से पहले से दबा हुआ है।
अब इतनी अधिक बारीकी से समझें तो निबेड़ा आए। नहीं तो निबेड़ा ही आए कैसे? यह तो पज़ल है। द वर्ल्ड इज द पज़ल इसटेल्फ। यह पज़ल सोल्व किस तरह की जा सकती है? देयर आर टू व्यू पोइन्ट्स टु सोल्व दिस पज़ल । वन रिलेटिव व्यू पोइन्ट, वन रियल व्यू पोइन्ट । इस जगत् में यदि पज़ल सोल्व नहीं करे तो वह पज़ल में ही डिसोल्व हो चुका है। पूरा जगत्, सभी इस पज़ल में डिसोल्व हो चुके हैं।
प्रश्नकर्ता : ऐसे अर्थ करके फिर सब लोग मज़े ही करेंगे न, कि मैं मालिक नहीं, ऐसा? और फिर सब इस तरह कहकर दुरुपयोग करेंगे न?
"एक गाँव में एक एरिया बहुत अच्छा है, आसपास की दुकानों के बीच में पाँचेक हज़ार फुट का ऐसा क़ीमती एरिया। उसके लिए किसी ने अरजी की सरकार को कि इस जगह में एक्साइज़ का माल दबा हुआ है। तब फिर पुलिस डिपार्टमेन्ट वहाँ गया, बरसात बीत गई थी इसीलिए उस जगह पर अच्छी हरी झाड़ी और पौधे उग गए थे। वह जगह पहले खोद डाली। फिर दो-तीन फुट गहरा खोदा, तब फिर अंदर से वह एक्साइज़ का माल सारा निकला। तब फौजदार ने आसपासवालों को