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अहिंसा
है कि 'यह सामायिक मैंने किया, यह मैंने किया।'
प्रश्नकर्ता : तो फिर भाव सजीव किस प्रकार से हो सकते हैं?
दादाश्री : ऐसे भाव सजीव नहीं हैं। भाव का मरण हो गया है। भावमरण वह निद्रा कहलाता है। भावनिद्रा और भावमरण वे दोनों एक ही हैं। इस 'अक्रम विज्ञान' में भाव वस्तु ही नहीं रखते, इसलिए फिर भावमरण होता नहीं, और क्रमिक में तो प्रतिक्षण भावमरण में ही बंधे होते हैं। कृपालुदेव तो ज्ञानी पुरुष न, इसलिए उन्हें अकेले को ही समझ में
आता था, उन्हें ऐसा लगता कि, 'यह तो भावमरण हुआ, यह भावमरण हआ।' इसलिए खद निरंतर सचेत रहते थे। दसरे लोग तो भावमरण में ही चला करते हैं।
भावमरण का अर्थ क्या? कि स्वभाव का मरण हुआ और विभाव का जन्म हुआ। अवस्था में 'मैं', उससे विभाव का जन्म हुआ और 'हम' अवस्था को देखें तब स्वभाव का जन्म हुआ। ___इसलिए यह पुद्गलहिंसा होगी न, तो उसका कोई निबेड़ा आएगा। परन्तु आत्महिंसावाले का निबेड़ा नहीं आएगा। इतनी बारीकी से लोग समझाते ही नहीं न! वे तो मोटा कात देते हैं।
__ अहिंसा से बढ़ी बुद्धि ऐसा है, आर्तध्यान और रौद्रध्यान तो मुसलमानों को होता है, क्रिश्चियनों को होता है, सभी को होता है, और अपने लोगों को भी होता है। उसमें फर्क क्या है? डिफरेन्स क्या? उल्टा अपने लोगों को अधिक होता है। क्योंकि जीवहिंसा में ज़रा मर्यादा रखी है। अहिंसाधर्म पालते हैं, उसके कारण अधिक होता है। क्योंकि उसका दिमाग़ बहुत तेज़ होता है, बुद्धिशाली होता है। और जैसे बुद्धि बढ़ती है, वैसे दूषमकाल में भयंकर पाप बंधते हैं। और अधिक बुद्धिशाली कम बुद्धिवाले को मारता भी है।
फ़ॉरेनवाले और मुस्लिम कोई बुद्धि से मारता नहीं है। अपने हिन्दुस्तान के लोग तो बुद्धि से मारते हैं। बुद्धि से मारना तो किसी काल
अहिंसा में होता ही नहीं था। इस काल में ही नयी बला खड़ी हुई है यह। परन्तु बुद्धि हो तब मारे न?! तब बुद्धि किसे होती हैं? एक तो इन जीवों का जो घात नहीं करते हों, अहिंसाधर्म पालते हों, छहों काया के जीवों की हिंसा नहीं करते हों, उनकी बुद्धि बढ़ती है। फिर कोई कंदमूल नहीं खाता हो उसकी बुद्धि बढ़ती है। तीर्थंकर की मूर्ति के दर्शन करे, उनकी बुद्धि बढ़ती है। और यह बुद्धि बढ़ी, उसका लाभ क्या हुआ?
प्रश्नकर्ता : इन लोगों के प्रति आप अन्याय करते हो।
दादाश्री : अन्याय नहीं करता। बहुत बुद्धिशाली हैं इसलिए उन्हें नुकसान होगा, ऐसा मैंने पुस्तक में लिखा है। जैसा है वैसा न कहें तो ज्यादा उल्टे रास्ते पर चलेंगे। बद्धि से मारना, वह भयंकर गुनाह है। तो बुद्धि बढ़ी उसका ऐसा दुरुपयोग करना है? और जागृति कम हो, वह बेचारा मंदकषायी होता है।
अहिंसा का धर्म पालता है, जन्मजात ही छोटे जीवों को नहीं मारना ऐसा उसकी बिलीफ़ में है, उसके दर्शन में है वह अधिक तीक्ष्ण बुद्धिवाला होता है।
प्रश्नकर्ता : जन्म से ही अहिंसा पालता है इसलिए उतने अधिक मृदु कहलाते हैं न?
दादाश्री : मृदु नहीं कहलाते । अहिंसा पालने का फल आया। उसका फल बुद्धि बढ़ी और बुद्धि से लोगों को मारते रहे, बुद्धि से गोलियाँ मारी। ऐसे ही खून कर डाले, तो एक जन्मों का मरण हुआ, परन्तु यह तो बुद्धि से गोली मारने में अनंत जन्म का मरण होगा।
बड़ी हिंसा, लड़ाई की या कषाय की? पहले के जमाने में गाँव के सेठ होते थे, वे अधिक बुद्धिवाले होते थे न ! गाँव में दो लोगों में झगड़ा हो तो सेठ उसका लाभ लेते नहीं थे। और दोनों को अपने घर बुलाते और दोनों के झगड़े का निकाल कर देते। और वापिस अपने घर भोजन भी करवाते। किस प्रकार निकाल करते थे?