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अहिंसा
अहिंसा यानी मनुष्य अकेले ही फलाहारी हैं ऐसा नहीं है। परन्तु अपनी गायेंभैंसे, गधे सभी फलाहारी हैं। वह कोई ऐसी-वैसी बात है? ये गधे बहुत भूखे हो गए हों और माँसाहार डालें तो नहीं छूते। इसलिए हमें अहंकार भी करने जैसा नहीं कि, 'भाई, हम प्योर वेजिटेरियन हैं।' अरे नहीं, प्योर वेजिटेरियन तो यह गाय-भैंसे हैं, उसमें तूने क्या किया दूसरा? ये प्योरवाले तो किसी दिन अंडा भी खा आते हैं। जब कि वे तो कुछ भी नहीं। 'हम प्योर, प्योर, प्योर' करने जैसा भी नहीं और जो करते हैं उनकी टीका करने जैसा है नहीं।
गुनहगार, कसाई या खानेवाला? प्रश्नकर्ता : एक कसाई हो, वह 'दादा' के पास ज्ञान लेने आया। 'दादा' ने ज्ञान दिया। उसका व्यापार चालू ही है और चालू ही रखना है, तो उसकी दशा क्या होगी?
दादाश्री : पर कसाई की दशा क्या बुरी है? कसाई ने क्या गुनाह किया है? कसाई को तो आप पूछो तो सही कि, 'भाई तू क्यों ऐसा काम करता है?' तब वह कहेगा कि, 'भाई, मेरे बाप-दादा करते थे, इसलिए मैं करता हूँ। मेरे पेट के लिए, मेरे बच्चों के पोषण के लिए करता हूँ।' हम पूछे, 'पर तुझे इसका शौक है?' तब वह कहता है, 'ना, मुझे शौक नहीं।'
यानी इस कसाई से तो माँसाहार खानेवाले को अधिक पाप लगता है। कसाई के लिए तो उसका काम ही है बेचारे का। उसे मैं ज्ञान हूँ। यहाँ मेरे पास आया हो तो मैं ज्ञान दूं। वह ज्ञान ले जाए तब भी कोई हर्ज नहीं। भगवान के वहाँ इसमें हर्ज नहीं।
कबूतर, शुद्ध शाकाहारी अपने यहाँ कबूतरखाने, यहाँ हिन्दुस्तान में होते हैं पर कौआखाने नहीं रखे? क्यों तोताखाना, चिडियाखाना ऐसा नहीं रखते और कबूतरखाना ही रखते हैं? कोई कारण तो होगा न? क्योंकि यह कबूतर अकेला ही बिलकुल वेजिटेरियन है, नोनवेज को छूता ही नहीं। तब अपने लोग समझे कि बरसात के दिनों में यह बेचारा क्या खाएगा? इसलिए अपने यहाँ कबूतरखाने बनाए और वहाँ फिर ज्वार डाल आते हैं। अब अंदर सड़ा हुआ दाना हो तो वह छूता नहीं है। उसके अंदर जीवजंतु है इसलिए छूता नहीं। बिलकुल अहिंसक! इन मनुष्यों ने बाउन्ड्री छोड़ी पर ये कबूतर बाउन्ड्री नहीं छोड़ते। कबूतर भी प्योर वेजिटेरियन हैं। इसलिए खोज की कि उसका ब्लड कैसा है? बहुत ही गरम। सबसे अधिक गरम ब्लड उसका है और उसमें समझ भी बहुत होती है। क्योंकि वह वेजिटेरियन, प्योर वेजिटेरियन है।
अंडे खाए जा सकते हैं? प्रश्नकर्ता : कुछ लोग तो ऐसी दलील करते हैं कि अंडे दो प्रकार के होते हैं, एक जीववाले और दूसरे निर्जीव। तो वे खाए जा सकते हैं या नहीं?
दादाश्री : फ़ॉरेन में वे लोग दलील कर रहे थे कि अहिंसक अंडे हैं! तब मैंने कहा, इस जगत् में जीव बिना का कुछ खाया ही नहीं जा सकता। निर्जीव वस्तु है न, वह खायी ही नहीं जा सकती। अंडे में यदि जीव नहीं हो तो अंडा खाया नहीं जा सकता, वह जड़ वस्तु हो गई। क्योंकि जीव नहीं हो वह जड़ वस्तु हो गई। हमें जीव को खाना हो न तो उसे ऐसे काटकर और दो-तीन दिनों तक बिगड़ नहीं जाए तब तक ही खाया जा सकता है। यह सब्जी-भाजी तोड़ने के बाद कुछ समय तक ही खायी जा सकती है। फिर वह खत्म हो जाती है। यानी जीवित वस्तु को खा सकते हैं। इसलिए अंडा यदि निर्जीव हो तो खा नहीं सकते, सजीव हो तभी खाया जा सकता है। इसलिए ये लोग यदि अंडे को सजीव नहीं कहते हों तो वे बातें सब हम्बग हैं। तब किसलिए लोगों को फँसाते हो ऐसा?
उन दूसरे प्रकार के अंडेवालों ने इस जगत में उस अंडे को किस रूप में रखा है वही आश्चर्य है। दूसरे प्रकार के अंडेवालो को पूछा कि यह दूसरी प्रकार का जीव निर्जीव है या सजीव है, वह मुझे बताओ। निर्जीव हो तो खाया नहीं जा सकता। सारी दुनिया को मूर्ख बनाया, आप लोग