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भय के कारण शत्रुपक्षीय योधाओं का सिंह नाद बन्द हो गया । यह देखकर शिशुपाल क्रुद्ध हो उठा । और अपनी सेना के साथ उसकी ओर दौड़ पड़ा । उस समय शिशुपाल की वह विकट शस्त्रों से युक्त सेना काव्य-रचना के समान सर्वतोभद्र ( १९।२७ ) चक्रबन्ध (१९। १२० ) गोमुत्रिकाबन्ध (१९। ४६ ) मुरजबन्ध (१९। २९ ) अर्धभ्रमकबन्ध (१९। ७२ ) आदि से युक्त दुर्जय दिखाई दे रही थी । रणक्षेत्र में यादव सेना के सम्मुख आते ही वह यादव सेना पर आक्रमण करने लगी दोनों सेनाओं में भीषण संग्राम प्रारम्भ हुआ । उस भयंकर युद्ध को देखकर आकाशगामी विद्याधर लोग भी आश्चर्य करने लगे । सेना के अगणित हाथियों, घोड़ों तथा सैनिकों का वध करता हुआ शिशुपाल तीव्र गति से आगे बढ़ रहा था । यादवों की सेना संत्रस्त हो रही थी । इस प्रकार शिशुपाल की विजय को सुनकर भगवान् श्रीकृष्ण का पाञ्चजन्य-शंख-बज उठा । अत्यन्त देदीप्यमान रथारूढ होकर महाधनुष लिये हुए श्रीकृष्ण रणक्षेत्र में आ पहुँचे । उनके आ पहुँचते ही शंख-ध्वनि से आकाश कंपित हो उठा । क्षण भर में ही शिशुपाल की वह सप्त-पंक्तिबद्ध सेना (व्यूह-रचना ) श्रीकृष्ण के एक ही बाण से छिन्न-भिन्न हो गई । भू–भार-भूत शिशुपालपक्षीय वीर राजा लोगों को श्रीकृष्ण ने नष्ट कर दिया । उस अवसर पर क्रोधादीप्त होकर भगवान् श्रीकृष्ण के द्वारा छोड़े हुए बाणों से आकाश आछादित हो गया और सूर्य अदृश्य सा प्रतीत होने लगा ।
विंश सर्ग
{ इस सर्ग में महाकवि माघ ने उपसंहार रूप में युद्ध वर्णन कर शिशुपाल के जीवन के साथ ही काव्य को समाप्त कर दिया है ।)
इस प्रकार भगवान् श्रीकृष्ण के अतुलित पराक्रम को न सहन कर सकने के कारण शिशुपाल की भृकुटियाँ वक्र हो गयीं, उसके विशाल ललाट पर उभरी हुई तीन वक्राकार रेखाएँ उसके मुख को और अधिक विकराल बनाने लगी । वह निर्भय होकर श्रीकृष्ण को युद्ध के लिये ललकारने लगा । उसने बाणों की वर्षा प्रारम्भ कर दी । उसके असंख्य बाणों से आकाश पूर्णत: आच्छन्न हो गया । उसके असंख्य बाणों ने यादवी सेना को एक कटघरे जैसे में बन्द कर दिया, जिसमें वह हिल भी नहीं सकती थी । उसमें से निकलने का कोई मार्ग नहीं था । शिशुपाल के वज्र के समान धनुष-टंकार की ध्वनि से पृथ्वी कम्पित हो रही थी । यह दृश्य देखकर भगवान् श्रीकृष्ण ने अपने धनुष को शिशुपाल की ओर तान दिया । क्षणमात्र में ही उन्होंने शिशुपाल के समस्त बाणों को काटकर नीचे गिरा दिया । यह देखकर यादवी सेना जयघोष करती हुई प्रफुल्लित हो उठी। श्रीकृष्ण इतने तीव्र वेग एवं त्वरा से बाण छोड़ रहे थे कि दर्शकों की दृष्टि उन पर टिक नहीं रही थी । भगवान श्रीकृष्ण के इस चमत्कार को देखकर शिशपाल ने 'स्वापनास्त्र' का प्रयोग किया । किन्तु भगवान् श्रीकृष्ण के कौस्तुभमणि के प्रकाश में वह विलीन हो गया