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शिशुपाल को भी खूब खरी-खोटी सुनाई । यदि राजा युधिष्ठिर ने भगवान् श्रीकृष्ण की पूजा की है तो शिशुपाल को क्यों द्वेष होता है ? भगवान् श्रीकृष्ण और शिशुपाल में कोई प्रतिस्पर्धी हो ही नहीं सकती, क्योंकि दोनों में बहुत अन्तर है । सज्जन पुरुष स्वभावतः ही सदा दूसरों का उपकार करने वाले होते हैं, किन्तु आश्चर्य है कि उनकी उन्नति भी दुष्टों के हृदयों में पीड़ा पहुँचाती है । दुष्टों की कठोर वाणी से महान् पुरुषों का गौरव निश्चय ही नष्ट नहीं होता । सात्यकि ने आगे कहा-तुम्हारा राजा जैसा भी चाहे श्रीकृष्ण को आकर देख लें । उसे उचित उत्तर देने में श्रीकृष्ण थोड़ा भी विलंब नहीं करेंगे । अब यदि तुम कोई अप्रिय बात कहोगे तो तुम्हें दण्ड मिलेगा । इस पर दूत पुन: बोला मैंने सन्धि अथवा विग्रह करने की बात जो आप से कही है, उनमें आप अपने विवेक से एक कोई ग्रहण कर लें । सैकड़ों अपराधों को सहन करने वाले आप का रुक्मिणी हरण रूप एक ही अपराध क्षमाकर शिशुपाल आप से आगे बढ़ गये हैं । उन्होंने युद्धार्थ यादवों को ललकारने के लिए मुझे आपके पास भेजा है । रणक्षेत्र में उनके सम्मुख कोई नहीं ठहर सकता । वे मित्रों के लिए चन्द्रतुल्य आनन्द देने वाले तथा शत्रुओं के लिए सूर्य की तरह सन्तापदायक हैं । वे इन्द्र को भी जीतने वाले हैं । अन्त में दूत ने कहा-हे श्रीकृष्ण ! सूर्य का तेज लोकालोकपर्वत का अतिक्रमण नहीं कर पाता, किन्तु हमारे राजा शिशुपाल का विश्वव्यापी तेज बड़े बड़े भूभृतों राजाओं का अतिक्रमण कर जाता है । उनके शत्रु की रमणियाँ पतियों के मरने पर भी विभूषणा श्रेष्ठभूषणवाली, पक्षां०-भूषणरहिता-ही रहती हैं । हमारे राजा शिशुपाल अतुल पराक्रमी हैं, वह रण में शीघ्र ही तुम्हारा वध करेंगे और तुम्हारी रोती हुई स्त्रियों पर दया करके अपने 'शिशुपाल' नाम को सार्थक करेंगे ।
सप्तदश सर्ग
{ सप्तदश और अष्टादश सर्ग में सेना की तैयारी का एवं योद्धाओं के सनद्ध होने का वर्णन किया गया है ।
इस प्रकार शिशुपाल के दूत के प्रचण्डवायु की तरह गम्भीर कटु एवं श्लिष्ट वचन कहने पर भगवान् श्रीकृष्ण की वह सभा तुरन्त ही अत्यन्त क्षुब्ध हो उठी । सभा में उपस्थित सभी राजालोगों के शरीर क्रोध से लाल हो गये, पसीना बहने लगा । हथेलियों से अपनी जाँघों को पीटते हुए दाँतों से ओंठों को काटने लगे । बलरामजी दूत के वचनों को सुनकर तिरस्कार पूर्वक अट्टहास करने लगे । इसी प्रकार उल्मुक, युधाजित्, आहुकि, सुधन्वा, मन्मथ, पृथु तथा अक्रूर आदि वीर क्रोधावेश में तत्काल ही शिशुपाल को नष्ट कर देना चाहने लगे ।
___इस प्रकार अत्यन्त क्रुद्ध यदुवंशी राजाओं द्वारा खूब फटकारे जाने पर वह दूत सभा से चला गया और तुरन्त ही श्रीकृष्ण की सेना में युद्ध की तैयारी होने लगी और