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पञ्चदश सर्ग {पूजा के अनन्तर शिशुपाल, सभा के बीच में युधिष्ठिर द्वारा किये गये भगवान् श्रीकृष्ण के सम्मान को नहीं सहन कर सका, और वह कृष्ण, भीष्म और युधिष्ठिर को खरी-खोटी सुनाने लगा।
__ श्री कृष्ण की पूजा के अनन्तर शिशुपाल अत्यन्त कुपित हो उठा और वह कटुवचन कहने लगा - 'हे युधिष्ठिर ! सज्जनों द्वारा अपूजित इस कृष्ण की जो तुमने पूजा की है, उससे तुम्हारा इसके प्रति प्रेम ही प्रकट होता है - इसकी पूज्यता नहीं । आश्चर्य है ! तुम्हारा यह 'धर्मराज' नाम झूठा ही है । हे कुन्ती पुत्रो ! यदि यह कृष्ण ही तुम्हारे लिये अधिक पूजनीय था, तो व्यर्थ ही अपमान करने के लिये इन राजाओं को तुमने क्यों बुलाया ? अथवा तुम सबके सब महामूर्ख हो! तुम्हें धर्म-तत्त्व का ज्ञान नहीं है । आश्चर्य है, व्यर्थ में ही बाल पका कर बूढा और नष्ट बुद्धिवाला यह नदी का पुत्र भीष्म भी इस प्रसंग में असावधान और मतवाला बन गया था । हे भीष्म ! तुम सचमुच ही निम्नगा - निम्नस्तर की ओर बहने वाली नदी-गंगा-के पुत्र हो ।' इस प्रकार युधिष्ठिर
और भीष्म को कटुवचन सुनाकर भगवान् श्रीकृष्ण से कहने लगा - हे कृष्ण ! राजाओं के योग्य इस पूजा को तुम्हें नहीं स्वीकार करना चाहिए था । तुम स्वयं अपने सम्बन्ध में सोचो कि 'मैं कौन हूँ ।' मधु की मक्खियों को मारकर तुम 'मधुसूदन' बने हुए हो । जरासन्ध ने तुम्हारे तेज को ध्वस्त कर दिया था । बलराम के साथ रहने के कारण 'सबल' कहलाते हो । तुम 'सत्यप्रिय' के नाम से ख्याति प्राप्त करते हो । किन्तु तुम्हारा यह 'सत्यप्रिय' नाम सत्यभामा से प्रेम रखने के कारण है । इस चञ्चल मति कृष्ण ने अब तक शकटासुर का वध, यमलार्जुन का भंग, गोवर्धन को ऊपर उठाना आदि जिन-जिन कार्यों को किया है, उनसे किसी धीर बुद्धिं वाले को कौन सा विस्मय होगा ? हे - अविवेककारी ! समस्तगुणों से विहीन यह तुम्हारी की गयी पूजा इस संसार में केशविहीन शिर में कंघी करने के समान है । इतनी कटुबाते कहने के पश्चात् वहाँ उपस्थित राजाओं को शिशुपाल कहने लगा - हे पृथ्वी के स्वामियों ! सिंहों के समान आप लोगों को देखते हुए भी इस प्रकार इन कुन्ती-पुत्रों ने गीदड़ के समान इस कृष्ण की पूजा की है । यह आप सबका अपमान है । इस कृष्ण की बुद्धि पूतना के प्रति यदि स्त्री होने के कारण से दयायुक्त नहीं हुई तो नहीं सही, किन्तु इस निर्दय-हृदय को जिसने उस पूतना का स्तनपान किया था, वह धर्म से माता भी तो इसकी होती थी । फिर भी इसने उसे मार डाला । इस प्रकार कहकर वह नरकासुर के साथ ताली बजाकर जोर से अट्टहास करने लगा । श्रीकृष्ण भगवान् मौन रहकर इसके अपराधों को गिन रहे थे । शिशुपाल के इन कटुवचनों को सुनकर भीष्मपितामह गरजकर बोले - हे राजाओं ! जिस राजा को आज इस सभा में मेरे द्वारा की गयी भगवान् श्रीकृष्ण की पूजा सह्य नहीं है, वह धनुष चढ़ा ले । यह मेरा बाँया