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प्रांगण में रेंगता हुआ, पद्मिनियों द्वारा कमलरूपी मुख के हास्य के साथ देखा जाता हुआ, पक्षियों के कलरव में बुलाती हुई अपनी माता की गोद में, अपने कोमल करारों को फैलाता हुआ मन्द-मन्द हँसता–डोलता चला जा रहा था । इस प्रकार कल्पान्त में जगत् का संहार कर क्षीर समुद्र में सोये हुए विष्णु भगवान् के सदृश सूर्य आकाश में टिम टिमाते तारागणों को नष्ट कर आकाश में सोता हुआ सा परिलक्षित होने लगा ।
द्वादश सर्ग
{ इस सर्ग में सेनाप्रयाण के वर्णन के साथ यमुना को पार करने का सुन्दर चित्रण किया गया है । इस प्रकार सूर्योदय हो जाने के पश्चात् रथों, अश्वों और गजों पर सवार राजाओं के समूह शिविरों के बाहर भगवान् श्रीकृष्ण की प्रतीक्षा करने लगे । तदनन्तर भगवान् श्रीकृष्ण अपने मनोरम रथ पर आरूढ होकर शिविर से बाहर निकले । भगवान् श्रीकृष्ण के चलने पर दूसरे राजा लोग भी उनके पीछे-पीछे चल पड़े । तत्पश्चात् शिविर के तम्बू-कनात आदि को समेट कर गाड़ी, ऊँट, बैल, खच्चर आदि वाहनों पर लाद-लादकर पैदल सेना चलने लगी । उस समय भगवान् श्रीकृष्ण की सेना का वह विशाल समुद्र ‘सामवेद' की समता धारण कर रहा था । उनकी सेना के प्रयाण के अवसर पर पाञ्चजन्य शंख एवं मृदङ्ग आदि की होने वाली भयावह ध्वनि से विपक्षी राजाओं का हृदय दहलने लगा । रथ के चक्कों तथा हाथियों को चिग्घाड़ की शब्द-ध्वनि परस्पर मिश्रित होने से कुछ स्पष्ट ज्ञात नहीं हो रहा था, केवल घोड़ों की हिनहिनाहट सुनाई पड़ रही थी । रथों के चक्कों से विदीर्णभूमि हाथियों के पैरों से समतल हुई भूमि हल से जोतने के पश्चात् पाटा से समतल की हुई सी दिखाई दे रही थी । अश्वारोहियों ने उतार के स्थानों पर लगाम को जकड़कर रखने से घोड़े धीरे-धीरे ढालू भूमि पर उतर रहे थे, किन्तु मैदान में पहुँचने पर शीघ्रतापूर्वक अपनी खुरों से टप-टप करते हुए दौड़ रहे थे । उस सेना में छत्रधारी अनेक राजाओं के होने से सर्वत्र छाते ही छाते दिखाई पड़ रहे थे । बन्दीजन भगवान् श्रीकृष्ण के गुणों की प्रशंसा के अनेक श्लोक आगे-आगे गाते चल रहे थे । भगवान् श्रीकृष्ण की सेना समुद्र जैसी विशाल होने पर भी मर्यादा बद्ध होकर चल रही थी । ग्रामीण वधुएँ भगवान् श्रीकृष्ण को छिप-छिपकर बार-बार निहार रही थी । भगवान् श्रीकृष्ण ने मार्ग में देखा कि ग्रामीण-गोप मण्डलाकार में बैठकर, मद्य-पान करते हुए उच्च स्वर में अट्टहास कर रहे हैं । धान के खेतों की रखवाली करने वाली स्त्रियाँ जब तक तोतों को उड़ाने के लिए जाती थीं तब तक उस धान को मृगों के समूह आ-आकर चरने लगते थे । इस प्रकार व्याकुल हुई उन स्त्रियों को मुस्कराते हुए श्रीकृष्ण ने देखा । मार्ग में ऊँट पर चढ़ने वाले उन पर बैठ भी नहीं पा रहे थे कि वे शीघ्रगामी ऊँट त्वरा से उठकर नकेल की उपेक्षा करते हुए शीघ्रता से चल पड़ रहे थे । कोई ऊँट नकेल को दृढ़ता पूर्वक खींचे जाने पर आधी चबाई हुई नीम की पत्तियों को बाहर निकालता हुआ उच्च स्वर