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एकादश सर्ग
जिसकी बारी आयी है
बार-बार जगा रहा
{ अब इस सर्ग में प्रभात का वर्णन किया जा रहा है । यह सर्ग कवि की काव्य- कुशलता, निरीक्षण - शक्ति की सूक्ष्मता का तथा स्वभावोक्ति की चित्रोपमता के अनूठे समन्वित रूप को प्रस्तुत करता है । बन्दीजनों ने किस प्रकार रात्रि के बीतने एवं प्रभात के आगमन का वर्णन किया है इसी का पूरे सर्ग में वर्णन देखने को मिलता है |} सुरत - क्रीड़ा की उत्सुकता से बार-बार के विलास में लीन होने के कारण खिन्न कामी - जनों के नेत्र अभी तक पूर्णरूप से बन्द भी नहीं हो पाये थे कि तभी रजनी के बीतने की सूचना देने वाला मृदंग उच्चस्वर में बज उठा । प्रातःकाल स्तुति - पाठ करने वाले बन्दीजनों के मधुर स्वर वीणा वादन के साथ सुनाई देने लगे । प्रातः काल हो गया है । रात्रि की सुरत - क्रीड़ा के कारण थककर प्रगाढ़ नींद में सोये हुए दम्पतियों में नायिकाएँ पहले जग गई हैं, किन्तु फिर भी वे अपने शरीर को इसलिए नहीं हिलाती डुलाती कहीं उनके हाथ के हटा लेने से प्रिय की नींद टूट न जाय । वस्तुतः वे स्वयं भी आश्लेषजनित अपूर्व सुख का वियोग नहीं चाहतीं । एक पहरेदार ने अपना पहरा पूरा कर दिया है । वह अब सोना चाहता है । इसलिए दूसरे पहरेदार को “उठो, जागो" किन्तु दूसरा व्यक्ति नींद में अस्पष्ट स्वर में उत्तर तो देता रहा, पर जागता नहीं था । क्षणभर तक शयन करके तुरन्त ही उठे हुए राजा लोग पिछले प्रहर में बुद्धि के अत्यन्त निर्मल हो जाने पर राज्य के सम्बन्ध में, साम, दाम, आदि प्रयोगों का निर्वाचन कर धर्म, अर्थ और काम की चिन्ता करने लगे । अहीर मक्खन निकालने के लिए मथानी मटके में डालकर दही को मथने लगे । घोड़े खड़े-खड़े ही आँखों को बन्द करके जो सो गए थे, प्रातःकाल होते ही जग गये और नथूनों को फड़काते हुए आगे पड़ी हुई घास को खाने लगे । पूर्व दिशा में उदित चन्द्रमा अब पश्चिम दिशा को जाता हुआ प्रभा हीन हो गया था । कुमुदिनियों की शोभा फीकी पड़ गई । मालती के विकसित पुष्पों की सुगन्ध से युक्त वायु मन्द मन्द प्रवाहित होने लगी । कमलों की सुगन्ध से उन्मत्त भ्रमरगण इधर-उधर उड़ने लगे । शीतल, मन्द और पुष्प - सुवासित वायु के बहने से सुरत से श्रान्त - क्लान्त रमणियों की कामाग्नि पुनः उद्दीप्त हो रही थी । वाराङ्गनाएँ राजभवन से अपने-अपने निवास स्थान को लौट रही थीं । अरुणोदय से अन्य कार दूर हो रहा था । नवोढ़ा नायिकाएँ रात्रि के विविध सम्भोग - वृत्तान्तों का समरण कर स्वयं लज्जित हो रही थीं । अग्निहोत्रियों के घर में प्रज्वलित अग्नि जल रही थी । तपस्वीगण मन्त्रों का जप करने लगे थे । सूर्योदय के साथ-साथ पूर्व दिशा सूर्य की पीत और लालिमा से रञ्जित हो रही थी । नदियों की जलधारा सूर्यकिरणों के सम्पर्क से लाल हो रही थीं । कमलों के विकसित हो जाने से उनमें बन्द भ्रमर बाहर निकल रहे थे । पक्षियों ने कलरव प्रारम्भ कर दिया था । उदय कालिक बालसूर्य उदयाचल के विशाल
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