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[ 28 ] माघोत्तरवर्ती काव्यों में नहीं मिलता अब केवल श्लेषादि शब्दप्राधान्य की ही प्रधानता उनमें दृष्टिगोचर होती है । यह प्रवृत्ति रत्नाकर कृत 'हरविजय' ( ५० सर्ग ) शिवस्वामी कृत 'कफ्णिाभ्युदय' मंखक कृत- 'श्रीकण्ठचरित', हरिश्चन्द्र कृत 'धर्मशर्माभ्युदय' आदि काव्यों में पर्याप्त मात्रा में देखने को मिलती है । उक्त सभी काव्य माघ से प्रभावित हैं । ये सभी ह्रासोन्मुख होकर चमत्कार प्रदर्शन-परम्परा पालन करते दिखाई देते हैं । लक्षण ग्रन्थों के अनुसार –'शिशुपालवध' – काव्य का महाकाव्यत्त्व -
लक्षण ग्रन्थों के आचार्यों के अनुसार महाकाव्य का स्वरूप इस प्रकार है - (१) महाकाव्य का सर्गबद्ध होना आवश्यक है, जो सन्धियों से समन्वित हो । (२) उसका नायक धीरोदात्त, क्षत्रिय अथवा देवता होना चाहिए । (३) उसमें सों की संख्या आठ से कम नहीं होनी चाहिए, उसमें अनेक वृत्तों की योजना होनी चाहिए । सर्गान्त में लक्षणानुसार छन्द का परिवर्तन होना चाहिए । (४) महाकाव्य का इतिवृत्त इतिहास प्रसिद्ध हो अथवा सज्जनाश्रित जिसमें जीवन, जगत् तथा प्रकृति के विभिन्न अङ्गों का सरस चित्रण हो । (५) श्रृङ्गार, वीर और शान्त रसों में से कोई एक रस अङ्गीरूप में वर्णित हो । (६ ) प्रकृतिवर्णन तथा वस्तुवर्णन के रूप में उसमें नगर, समुद्र, पर्वत, सन्ध्या, प्रात:काल, संग्राम, यात्रा तथा ऋतुओं का वर्णन होना चाहिए । (७) शैली के रूप में काव्य सौष्ठव तथा काव्य के समस्त गुण पूर्ण विकसितरूप में हों। (८) उसमें महत्कार्य और युगजीवन का चित्र होना चाहिए । (९) उसमें ज्ञानोपदेश विषयक वर्णन होना चाहिए । (१०) अनवरुद्ध जीवनी शक्ति और सशक्त प्राणवत्ता होनी चाहिए ।
प्राचीन और आधुनिक लक्षण ग्रन्थों में निर्दिष्ट लक्षणों के अनुसार 'शिशुपालवध महाकाव्य' पर महाकाव्य के समस्त लक्षण पूर्ण रूप से घटित होते हैं । आलोच्य काव्य - 'शिशुपालवध' महाकाव्य के नायक क्षत्रियवंशोत्पन्न यदुकुल के श्रेष्ठ भगवान् श्रीकृष्ण हैं, जिनमें नायकत्व के समस्त गुण विद्यमान है । वह विनयशील, त्यागी, कार्य करने में कुशल, लोकप्रिय, स्थिरचित्त, युवा, साहसी शूर एवं तेजस्वी तथा धीरोदात्त नायक के समस्त गुणों से संयुक्त हैं । वास्तव में माघ के श्रीकृष्ण परब्रह्म होते हुए भी मनुष्य है । उनका अवतार 'परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्' ही हुआ है । उन्होंने इन्द्रसन्देश के अनुरूप शिशुपाल का वध करके अपनी प्रतिज्ञा को पूर्ण किया है । इस प्रकार काव्य का संपूर्ण कथा-सूत्र काव्य के नायक श्रीकृष्ण से बंधा हुआ है । जो कथा को फल की ओर ले जाता है । काव्य का प्रतिनायक वीर 'शिशुपाल' है । कवि माघ ने दण्डी के