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कोई भी इस प्रभाव से मुक्त नहीं हो सकता । यह एक अटल सत्य है । कभी-कभी ऐसा भी होता है कि किन्हीं दो भिन्न काव्यों में कुछ स्थलों में समान पद, समान वाक्य, समान अर्थ तथा समान शैली तक देखने को मिलती है, यहाँ यह आवश्यक नहीं कि एक ने दूसरे का अनुकरण किया हो या नकल की हो । बात यह है कि किसी विषय के प्रति कभी-कभी एक ही प्रकार के भाव दो या कई कवियों में स्फुरित होते हैं, और उन कवियों में देश-काल आदि का बहुत बड़ा व्यवधान भी रहता है । लोक-श्रुति भी है कि महापुरुषों के विचार प्राय: समान ही होते हैं । चिन्तन प्रणाली की यह एकता मनुष्य जाति में स्वभाव सिद्ध है ।
पूर्ववर्ती साहित्य और वर्तमान साहित्य के धनी ऋणी सम्बन्ध, तथा मानव जाति की चिन्तन प्रणाली की एकता पर विचार कर लेने के पश्चात् हमें आलोच्य कवि के काव्य-प्रणयन के उद्देश्य तथा उसके समय की साहित्यिक दशा पर भी विचार कर लेना होगा जिसके कारण कवि के काव्यवर्णन पूर्वकवियों - कालिदास, भारवि, भट्टि आदि- के काव्य वर्णनों से प्रभावित परिलक्षित होते हैं । महाकवि माघ ने अपने जीवन की उत्कट अभिलाषा को इन – 'सुकविकीर्तिदुराशयाऽअद: काव्यं व्यधत्त शिशुपालवधाभिधानम्" शब्दों में अंकित 'सुकविकीर्ति दुराशा' के द्वारा व्यक्त किया है । माघ की इस अभिलाषा के विषय में तथा तत्कालीन साहित्यिक वातावरण के विषय में हम इसके पूर्व ‘माघ कवि का व्यक्तित्व'- इस शीर्षक के अन्तर्गत पर्याप्त चर्चा कर चुके हैं । अतः यहाँ संक्षेप में इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि माघ को अपनी अभिलाषा-'सुकविकीर्ति' की पूर्ति के लिये अत्यधिक परिश्रम करना पड़ा होगा । क्योंकि उन दिनों 'सुकवि-कीर्ति' को प्राप्त करना कोई सरल कार्य नहीं था । वह राजा और उसकी सभा में पूर्व से ही कुण्डलीमारकर बैठे हुए अत्यन्त घाघ कवियों की कृपा-दृष्टि पर निर्भर थी । एक कवि ने तो ऐसी राज-सभा को हिंस्त्र-जन्तुओं से भरे समुद्र के समान कहा है ( मृच्छकटिक ९। १४ ) ऐसी स्थिति में नये कवि के लिये राज-सभा में प्रवेश पाना दुष्कर था । इसका संकेत
____ 1. There is no more interesting and important fact in human history than the universality of folk songs and legends. There is an amazing similarity between the subjects of the songs of the East and the songs of the West and stories are common to all the peoples of the world.............Probably the most satisfactory explanation of the universality of myths is that they are the result of universal experience and sentiment."
The outline of literature of John äink Water. Vol I 1940 London Page no 28 to 30.