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शिशुपालवधम् अन्वयः-इति सः (हरिः) विशकलितार्थाम् अनुगतनयमार्गाम् दुर्नयस्य अर्गलां जनितमुदम् उच्छ्रितोरःस्थलनियत निषण्णश्रीश्रुताम् एनाम् औद्धवीम् वाचम् शुश्रुवान् (भगवान्) उदस्थात् ॥ ११८ ॥
हिन्दी अनुवाद-श्रीकृष्ण ने इस प्रकार (७१ से ११७ तक ) स्पष्टार्थ को प्रतिपादित करनेवाली, नीतिमार्ग का अनुसरण करनेवाली, दुर्नीति को रोकनेवाली तथा हर्पजनक और (श्रीकृष्ण के ) उन्नत वक्षःस्थल में सदा निवास करने वाली पत्नीस्वरूपा लक्ष्मी (अथवा वक्षःस्थल में सदा स्थित शोभा) से सुने गये उद्धव के वचन को सुना और सिंहासन से उठ खड़े हुए । प्रस्तुत श्लोक में रूपक और अनुप्रासालङ्कार है, एवं मालिनी छन्द है ।। ११८ ।। । इति पं० डॉ० केशवसदाशिवशास्त्रिमुसलेगावकर-विरचितायां माघकाव्य
टीकायां मन्त्रवर्णनं नाम द्वितीयः सर्गः ॥२॥