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द्वितीयः सर्गः
१२६ हिन्दी अनुवाद-यातव्य ( चढ़ाई किये जाने योग्य-शत्रु ) और पाणिग्राह (पीछे रक्षा करनेवाला ) आदि राजाओं को माला ( पंक्ति ) में अत्यधिक तेजस्वी राजा ही प्रधान समझा जाकर शोभित होता है। जैसे मणिहार का मध्यस्थ मणि अन्य मणियों की अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ होने के कारण नायकमणि ( प्रधानमणि) कहा जाता है। प्रकृत श्लोक में रूपक और उपमा का अङ्गाङ्गिभाव होने से सङ्करालकार है।। १२ ।।
विशेष- पृथ्वी पर सर्वाधिक तेजस्वी एवं शक्ति सम्पन्न राजा ही सार्वभौम सम्राट होता है। अतः तेजस्विता को ग्रहण करना चाहिये ।
प्रसङ्ग-अतः तेज एवं शक्ति के चाहने वाले राजा को षड्गुणरूपी रसायन का सेवन करना चाहियेअथ विमृष्यकरणप्रकारमाह
पाड्गुण्यमुपयुञ्जीत शक्त्यपेक्षं' रसायनम् ।
भवन्त्यस्यैवमलानि स्थानूनि बलवन्ति च ।। ९३ ।। पाडगुण्यमिति ।। शक्तिप्रभावादित्रयं बलं चापेक्षत इति शक्त्यपेक्षः सन् । पचायच् । शक्तिले प्रमावादो' इति विश्वः । षड्गुणा एव षाडगुण्यं सन्धिविन. हादिषट्कम् । चातुर्वर्यादित्वात्स्वार्थे प्यञ् प्रत्ययः । ददेव रसायनमौषधविशेषमुपयुजोर सेवेत । 'रसायनं विहङ्गेऽपि जराव्याधिमिदोषधे इति विश्वा। एवं सत्यस्य प्रयोक्तुरङ्गानि स्वाम्यादीनि ।
'स्वामी जनपदोऽमात्यः कोशो दुर्गबलं सुहृत् ।
राज्यं सप्तप्रकृरयङ्ग नीतिज्ञाः सम्प्रचक्षते ।' इति । गावागि च स्यास्न नि स्थिराणि । कालान्तरक्षमाणीत्यर्थः । 'ग्लाजिस्थश्च-' (३।२।१३६) इति गस्नुः : बलवरित च परमोडाक्षमाणि च भवन्ति । श्लिष्टप. रम्परितरूपकम् ।। ६३ ॥
अन्वयः-शस्यपेक्षः ( सन् ) षाड् गुष्यं रसायनम् उपयुम्जीत, एवम् भस्य अङ्गानि स्थास्नूनि बलवन्ति च भवन्ति ।। ९३ ।।
हिन्दी अनुवाद- प्रभाव, उत्साह और मन्त्ररूप शक्ति चाहने वाले राजा को सन्धि-विग्रहादि षड्गुणरूपी रसायन का सेवन करना चाहिये। ऐसा करने से ( रसायन का सेवन करने वाले व्यक्ति ) राजा के समस्त अङ्ग ( स्वामी अमात्यादि) (शरीर के समस्त अवयव ) स्थिर एवं शक्ति सम्पन्न ( शत्रुपीडन में समर्थ) होते हैं । प्रस्तुत श्लोक में श्लिष्ट परम्परित रूपकालङ्कार है ।। ९३ ॥
और इनके अभाव में भङ्ग शिथिल हो जाते हैं ।
१. शक्त्यपक्षो। ६ शि० व०