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प्रथमः सर्गः
(नारदजी ने श्रीकृष्ण से कहा कि आपने रामावतार में दशरथ के यहाँ जन्म लेकर पत्नी का हरण करने वाले उस रावण को समुद्र पर पुल बाँधकर लता के पास मार। था, क्या यह आपको स्मरण है !॥)
विशेष-विवाहोपरान्त राजा दशरथ रामचन्द्रजी को राजगद्दी देना चाहते थे, पर कैकेयी के कहने से उन्हें १४ वर्षों का वनवास दिया गया। वन में रहते समय रावण छल से सीताजी को हर ले गया । तब सुग्रीव के साथ मैत्री कर वानरों की सेना के साथ रामने नल-नील द्वारा निर्मित पुल के मार्ग से समुद्र को पार कर लंकाधिपति रावण का वध किया और विभीषण को लंका का राज्य देकर सीताजी के साथ १४ वर्ष पूर्ण होनेपर रामचन्द्रजी अयोध्या वापस आ गये। (वाल्मी० रामायण )
प्रसङ्ग-वही रावण शिशुपाल के रूप में उत्पन्न हुआ हैअथोपपत्ति छलनापरोऽपरामवाप्य शैलूष इवैष भूमिकाम् ॥ तिरोहितात्मा शिशुपालसंशया प्रतीयते सम्प्रति सोऽप्यसः परैः ॥६९।।
अथेति ॥ अथ राक्षसदेहत्यागानन्तरं सम्प्रति छलनापरः परप्रतारणापरः एष रावणः शैलूषो नटः तस्य भूमिकां रूपान्तरमिव ।
'शैलषो नटभिल्लयोः।
भूमिका रचनायां स्यान्मूय॑न्तरपरिग्रहे' ॥ इति विश्वः । अपरामुपपत्तिम् । जन्मान्तरमित्यर्थः । अवाप्य शिशुपालसज्ञया तिरोहितात्मा तिरोहितस्वरूपः सन् सोऽपि रावण एव सन्नपि पररितरैः स न भवतीत्यसः तस्मादन्य एव । 'नत्र' इति नञ्समासः । अत एव 'एतत्तदोः सुलोपो०-' (६।१।१३२ ) इत्यादिना न सुलोपः। प्रतीयते ज्ञायते इति प्रतिपूर्वादिणः कर्मणि लट् । यर्थक एव शैलूषो रूपान्तरमास्थाय तद्देशभाषादिभिरन्य एव प्रतीयते तद्वदयमपि मानुषदेहपरिग्रहादन्य इव भाति । दीजन्यं तु तदेवेत्यवश्यं संहायं इति भावः ॥६६॥
अन्वयः-अथ सम्प्रति छलनापरः एषः शैलूपः भूमिकाम् इव अपराम् उपपत्तिम् अवाप्य शिशुपालसंज्ञया तिरोहितारमा (सन् ) सोऽपि परैः असः प्रतीयते ॥ ६९ ॥
हिन्दी अनुवाद-इस ( रावण का शरीर त्यागने ) के पश्चात् दूसरे को वश्चित करने में निपुण (तस्पर ) यह (रावण) नटकी तरह दूसरे जन्मको पाकर (अभिनय के लिये दूसरे पात्र की वेषभूषा धारण कर) शिशुपाल इस नाम से (अपने मूल) स्वरूप को छिपाए हुए वही (रावण ) होता हुआ भी इस समय दूसरों द्वारा उससे मिन ज्ञात होता है ६९ ॥