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शिशुपालवधम्
विभिन्नशङ्खः कलुषीभवन्मुहुर्मदेन दन्तीव मनुष्यधर्मणः || निरस्त गाम्भीर्यमपास्तपुष्पकं प्रकम्पयामास न मानसं न सः ॥ ५५ ॥
विभिन्नेति ॥ स रावणो मदेन दर्पेण इनदानेन च । 'मदो दर्जे भदानवो:' इति विश्वः । दन्तीव गज इत्र विभिन्नो विघट्टितः शङ्खी निधिभेदः कम्बुश्च येन सः तन् । 'शङ्खो निध्यन्तरे कम्बुललाटास्थिनखेषु च' इति विश्वः । अकलुषं कलुषं क्षुब्धमाविलं च भवत्कलुषीभवत् । निरस्तं गाम्भीर्यमविकारित्वमगाधत्वं च यस्य तत् । अवास्तानि पुष्पाणि पुष्पकं विमानं च यस्मात्तत् । पुप्पपक्षे वैभाषिकः कप्प्रत्ययः । मनुष्यस्येव धर्मः श्मश्रुलत्वादिर्यस्येति स्वामी । तस्य मनुष्यधर्मणः । धर्मादनिच् केवलात्'- ( ५।४।१२४ ) इत्यनिच् । मानसं चित्तं तदीयं सरश्च । 'मानसं सरसि स्वान्ते' इति विश्वः । मुहुनं कम्पयामास न क्षोभयामासेति न । किन्तु कम्पयामासंवेत्यर्थः । कुबेरस्य महामहिमतया सम्भाविताप्रकम्पित्वनिवारणाय नद्वयम् । 'सम्भाव्य निषेधनिवर्तने नद्वयम्' ( ५१६ ) इति वामनः । अत्र दन्तिरावणयोः प्रकृताकृतयोः श्लेपः ।। ५५ ।।
अन्वयः -- सः मदेन दन्ती इव विभिन्नशङ्खः कलुषीभवन् निरस्तगाम्भीर्यम् अपास्तपुष्पकम् मनुष्यधर्मणः मानसं सुहुः न प्रकम्पयामास ( इति ) न ॥ ५५ ॥
हिन्दी अनुवाद - उस ( रावण ) ने मद ( अहंकार, गजपक्ष में, मदजल जो हाथी की कनपटी से झरता है । ) के कारण हाथी की तरह ( कुबेर कं ) शंख नामक निधि को (गजपत्र में, शङ्खों को ) नष्ट करके ( मन में ) क्षुब्ध, ( मान सरोवर पक्ष में मलिन ) होते हुए गम्भीरता ( सरोवर पक्ष में, अगाधता ) को नष्ट किये हुए और पुष्पक (सरोवर पक्ष में, पुष्पों का समूह ) विमान को छीनते हुए, क्या कुबेर के मनको पुनः पुनः कम्पित नहीं किया ? अर्थात् अवश्य किया ।। ५५ ।।
विशेष – 'नन्द्वयं प्रकृतार्थं द्रढयति ।' इस नियम के अनुसार उक्त श्लोक में दो 'न' के प्रयोग से यह सूचित किया गया है कि कुबेर के मन को अवश्य कम्पित कर दिया ||
( जिस प्रकार मदजल से उन्मत्त हाथी सरोवर में प्रविष्ट होकर उसके जल को कलुषित कर देता है और शंख पुष्पादि को नष्ट करता है, उसी प्रकार रावण ने अभिमान से क्षुब्ध होकर कुबेर के शंखनिधि को नष्ट कर डाला, उसके पुष्पक विमान को छीन लिया और कुबेर के मन की तथा मानसरोवर की गंभीरता को नष्टकर उसे बार-बार प्रकम्पित कर दिया ) ॥ ५५ ॥
प्रसङ्ग - कविमाघ वरुण पर रावण की विजय का वर्णन करते हैं ।