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भूमिका
श्रीहर्ष और नैषध
महाकवि श्रीहर्ष
संस्कृत वाङमय के उत्कृष्ट महान् कलाकारों में महाकवि श्रीहर्ष की गणना की जाती है और उनके रचे महाकाव्य "नैषधीयचरित' ( नैषध ) पर भारतीय काव्यप्रेमी को अभिमान है। कालिदास, बाणभट्ट, भवभूति, भारवि माघ आदि संस्कृत के मूर्धन्य महाकवियों की परंपरा में श्रीहर्ष का नाम गौरव के साथ लिया जाता है ।
'नैषधीयचरित' के प्रत्येक सर्ग के अन्त में "श्रीहर्षं कविराजराजिमुकुटालङ्कारहीरः सुतं श्रीहीरः सुषुवे जितेन्द्रियचयं मामल्लदेवी च यम्" - इत्यादि जो श्लोक दिया गया है, उस कवि के आत्म-परिचय से यह स्पष्ट है कि श्रीहर्ष के पिता का नाम श्रीहीर था और माता का नाम मामल्लदेवी । पदच्छेद के आग्रही कुछ मनीषी मामल्लदेवी का 'माम् + अल्लदेवी' ( मुझे अल्लदेवी ने ) करके उनकी माता का नाम अल्लदेवी बताना चाहते हैं, किन्तु सामान्यतया यही स्वीकृत है कि कवि जननी का नाम मामल्लदेवी ही है, जो 'वातापि' के निकट स्थित मामल्लपुर की निवासिनी थी। जैसा कि श्लोकगत विशेषण से स्पष्ट है, श्रीहर्ष के पिता श्रीहीर एक श्रेष्ठ कवि थेकविराजों के मुकुटों के हीरक अलंकार - ' कविराजराजिमुकुटालङ्कारहीरः ।' 'नैषवीयचरित' के ( प्राप्त ) अन्तिम बाईसवें सर्ग के चतुर्थ और अंतिम कवि - अभिस्वीकृति-परक श्लोक
ताम्बूलद्वयमासनञ्च लभते या कान्यकुब्जेश्वरा
द्य: साक्षात्कुरुते समाधिषु परं ब्रह्म प्रमोदार्णवम् । यत्काव्यं मधुवर्ष घर्षित परास्तर्केषु यस्योक्तयः
श्री श्रीहर्षकः कृतिः कृतिमुदे तस्याभ्युदीया दियम् ॥ से यह तो प्रकट हो ही जाता है कि काव्य के घनी होने के साथ-साथ