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नैषधमहाकाव्यम् माना जाता है । और जो बाण ले-आने के पूर्व ही जल से बाहर उभर आता है, वह पराजित माना जाता है। दमयन्ती-मुख से कमल पराजित हो गये, सो तब के उभर कर आये-आये आज भी जल के ऊपर ही रह कर मानो स्वपराजय को स्वीकारे हुए हैं । एतद्विषयक याज्ञवल्क्य का श्लोक (२।१०९) इस प्रकार है
"समकालमिषु मुक्तमानीयान्यो जयी नरः ।
गते तस्मिन्निमग्नाङ्ग पश्येच्चेच्छुद्धिमाप्नुयात् ।" मल्लिनाथ के अनुसार उत्प्रेक्षा और विद्याधर के अनुसार अनुमान तथा अतिशयोक्ति ॥ २७ ॥
धनुषी रतिपञ्चबाणयोरुदिते विश्वजयाय तभ्र वौ। नलिके न तदुच्चनासिके त्वयि नालीकदिमुक्तिकामयोः ॥ २८ ॥
जीवात-धनुषी इति । तद्म वौ विश्चजयायोदिते उत्पन्ने रतिपञ्च. बाणयोर्धनुषी नूनमित्यादिव्यञ्जकाप्रयोगाद्गम्योत्प्रेक्षा, किञ्च तस्याः दमयन्त्याः उच्चनासिके उन्नतनासापुटे त्वयि नालीकानां द्रोणिचापशराणां विमुक्ति कामयेते इति तथोक्तयोः तयोः 'शीलिकामिभक्ष्याचारिभ्यो ण' इति णप्रत्ययः, 'नालीकं पद्मखण्डेऽस्त्री नालीकः शरशल्ययोरि'ति विश्वः । नलिके न द्रोणिचापे न किमिति काकुः । पूर्ववदुत्प्रेक्षा ।। २८ ॥ ___ अन्वयः--तद्धृ वो विश्वजयाय उदिते रतिपञ्चबाणयोः धनुषी, तदुच्चनासिके त्वयि नालीकविमुक्तिकामयोः नलिके न (नु )।
हिन्दी-उसकी भौहें जगज्जय के निमित्त उद्यत रति और पंचबाण काम के दो धनुष हैं और उसकी उन्नत नासिका के दो छिद्र मुझ पर उन छोटे-छोटे बाणों को छोड़ने के निमित्त बाणाधार-दो नलिकाएँ नहीं हैं क्या? (हैं ही)।
टिप्पणी--उसकी भौहें सब को विमोहित करने वाली हैं, यह भाव है। काम के पांच बाण हैं-( १ ) अरविन्द, ( २ ) अशोक, ( ३ ) आम्र, (४) नवमल्लिका और ( ५ ) नीलकमल-"अरविन्दमशोकं च चूतं च नवमल्लिका। नीलोत्पलं च पञ्चैते पञ्चबाणस्य सायकाः ॥" उत्प्रेक्षा, विद्याधर के अनुसार रूपक-उत्प्रेक्षा, अथवा इन दोनों का संकर ।। २८॥