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नैषधमहाकाव्यम्
बना दिया है-मानो यह विचार कर ही अश्वों ने 'धारा' ( एक प्रकार घोड़ों के वेग से दौड़ने का प्रकार )-गति को छोड़कर मंडल करके दौड़ने की क्रिया ( चक्कर काटना ) की शोभा से धरती को सुशोभित किया।
टिप्पणी नल के शत्रुओं का भय से पलायन और समुद्रपर्यन्त प्रसरित उसकी कीर्ति का संकेत है। आस्कंदित (सरपट) चाल, धौरितक (दुलकी), रेचित ( सीधे दौड़ना ), वल्गित ( नाचते हुए-जैसे चलना ) और प्लुत ( उछलकर दौड़ना )-ये पांच प्रकार की घोड़ों की चाल 'धारा' कही जाती हैं । जिन विहारस्थली में घोड़ों को इन प्रकारों से न चलाकर मंडलाकार चलाया। उत्प्रेक्षा-अतिशयोक्ति का संकर अलंकार ।। ७१ ॥ अचीकरच्चारु हयेन या भ्रमीनिजातपत्रस्य तलस्थले नलः । मरुत् किमद्यापि न तासु शिक्षते वितत्य वात्यामयचक्रचंक्रमान् ॥७३॥ ___ जीवातु-अचीकरदिति । नलश्चारु यथा भवति तथा हयेन प्रयोज्येन कळ निजातपत्रस्य तलस्थले अधःप्रदेशे 'अधः स्वरूपयोरस्त्री तलमि'त्यमरः । या भ्रमीमण्डलगतीरचीकरत् कारितवान्, करोतेणी चङ् । तासु भ्रमीषु विषये मरूत् अद्यापि वातानां समूहो वात्या, 'वातादिभ्यो यः । अत्र तद्भ्रमयो लक्ष्यन्ते, तन्मयान् तद्रूपान् चक्रचंक्रमान् मण्डलगतीवितत्य विस्तीर्य न शिक्षते किन्नाम्यस्यते किमित्युत्प्रेक्षा । शिक्षितश्चेत् तथा सोऽपि गतिं कुर्यादित्यर्थः । वायोरप्यसम्भविता गतीरचीकरदिति भावः ॥ ७३ ॥
अन्वयः--जलः निजातपत्रस्य तलस्थले हयेन या चारु भ्रमीः अचीकरत् तासु अद्य अपि मरुत् वात्यामयचक्रचक्रमान् वितत्य किं न शिक्षते (अपितु शिक्षत्येव) ।
हिन्दी--नल ने अपने छत्र के नीचे घोड़े द्वारा जो मनोहर भ्रमण ( चक्कर ) कराये, आज भी क्या वायु वात्याचक्र ( ववंडर ) रूप में चक्कर खाते हुए उनके विषय में शिक्षा प्राप्त नहीं करता? ( अपितु शिक्षा प्राप्त करता ही है, पर अभी तक सीख नहीं पाया )।
टिप्पणी--नल का विशिष्ट-अश्वचालन-कौशल और अश्व की वायु से भी अधिक तीव्रगामिता और सत्त्व द्योतित । उत्प्रेक्षा । ७३ ॥