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नैषघमहाकाव्यम्
है । इस प्रकार यह उन सातों से श्रेष्ठ है और उन पर हँसने का अधिकारी है। घोड़ा सफेद रंग का है, जो मानो उसे प्राप्त यश की शुभ्रता है, सूर्याश्वों का रंग नीला कहा जाता है, यह मानो उनकी अकीर्ति का द्योतन करता है । महारथ का अर्थं महान् रथ वाला भी है । यों महारथ उसे कहते हैं, जो दशसहस्र धनुर्धारियों से अकेला लड़ सके और शस्त्र शास्त्र प्रवीण हो । जो पुरुष अपने सारथि और रथ की रक्षा करता हुआ युद्ध कर सके, वहु मी महारथ कहा जाता है । विद्याधर के अनुसार इस पद्य में अपहनुति व्यतिरेक - श्लेप का संकर है, मल्लिनाथ सापह्नवा उत्प्रेक्षा मानते हैं । भविष्योत्तरपुराण- आदित्यस्तोत्र के अनुसार सूर्य के सात घोड़े हैं - ( १ ) जय, (२) अजय, (३) विजय, २) जितप्राण, (५) जितश्रम, (६) मनोजव और ( ७ ) जित - क्रोध -- ' जयोऽजयश्च विजयो जितप्राणो जितश्रमः । मनोजवो जितक्रोधो वाजिनः सप्तकीर्तिताः ॥ ६१ ॥
सितत्विषश्चञ्चलतामुपेयुषो मिषेण पुच्छस्य च केसरस्य च । स्फुटाञ्चलच्चामरयुग्मचिह्नकैरनि नुवानं निजवाजिराजताम् ॥६२॥
जीवातु -- सितेति । पुनः कथम्भूतम् ? सितत्विषः विशदप्रभस्य चञ्चलतामुपेयुषा चञ्लस्येत्यर्थः । पुच्छस्य लाङ्गूलस्य केसरस्य ग्रीवास्थवालस्य च मिषेण च्छलेन चलतश्चामरयुग्मस्य चिह्नकैः लक्षणः स्फुटां प्रसिद्धां निजां वाजिराजतां अश्वेश्वरत्वमनिह नुवानं प्रकाशयन्तमिव । अश्वामिनः कथञ्चामरयुग्ममिति भावः । पूर्ववदलङ्कारः ।। ६२ ।।
अन्वयः -- सितत्विषः चंचलताम् उपेयुषः पुच्छस्य केसरस्य च मिषेण चलन्चामरयुग्मचिह्नकैः निजवाजिराजतां स्फुटम् अनिह, नुवानम्'''' ।
हिन्दी -- श्वेत दीप्तियुता, चंचलता को प्राप्त ( चंचल ) पूँछ और केसर ( अयाल, गरदन के बाल ) के व्याज से डोलते चामर-युगल - ( राजोपयुक्त ) - चिह्नों द्वारा जैसे अपना अश्वराज होना स्पष्टतया प्रकट करते ... |
-- छत्र और चामर
टिप्पणी-- पुच्छ और केसर दो राजाओं के चिह्न हैंराजा धारण करते हैं --- इन दो चिह्नों के लिए 'चिनैः' बहुवचन 'चलनक्रियापेक्षया' है -- यह 'प्रकाश' कार की मान्यता है । विद्याधर और मल्लिनाथ इस