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() किसी से विश्वासघात नहीं करता। (ट) किसी को झूठी अथवा खोटी सलाह नहीं देता। (ठ) झूठ विभिन्न कारणों से बोला जाता है-क्रोध में, लोभ से,
डर से, हँसी में और निन्दा में। अत: इन कारणों से बचता
(३) अचौर्याणुव्रत : इस अणुव्रत द्वारा चोरी का त्याग करता है। इसमें ये
बातें गर्भित हैं : (क) किसी की चीज चोरी के अभिप्राय से नहीं लेता। (ख) किसी को चोरी करने में सहायता नहीं करता। न किसी को
चोरी का उपाय बताता है। (ग) चोरी का सामान खरीदता-बेचता नहीं। (घ) कानून में जिसकी मनाही हो, वह व्यापार नहीं करता। (ङ) बही-खाता, लेखा-पत्रादिक गलत नहीं बनाता। टैक्स की चोरी
नहीं करता। (च) ज्यादा दाम की चीज में कम दाम की चीज को मिलाकर नहीं
बेचता। (छ) घूस न तो लेता और न ही देता है। (ज) किसी ट्रस्ट अथवा संस्था की सम्पत्ति को न तो अपने काम में
लेता है और न उसे गलत जगह लगाता है। (झ) किसी के यहाँ नौकरी करते हुए अपनी शक्ति को नहीं
छिपाता, और मालिक को किसी प्रकार से नुकसान न हो ऐसी
चेष्टा करता है। (४) ब्रह्मचर्याणुव्रत : इस अणुव्रत का दूसरा नाम है स्वस्त्री-संतोष।
अपनी विवाहिता स्त्री के अतिरिक्त शेष समस्त स्त्रियों के प्रति माँ, बहन अथवा बेटी का व्यवहार रखता है। इस अणुव्रत में निम्नलिखित बातें गर्भित हैं : (क) परस्त्री और वेश्या के संसर्ग का त्याग। (ख) भोगों की तीव्र लालसा नहीं रखता। (ग) भोगों के अप्राकृतिक उपाय नहीं करता।