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४ जीव पदार्थ सामान्य ।
प्रकाश सारे शरीर मे व्याप कर रहता है । ऐसा माननेपर भी कुछ ठीक प्रतीत नही होता। क्योकि इस प्रकार तो जब बडे शरीर मे रहेगा तब वहां उसका प्रकाश हल्का होगा, जैसे कि एक दीपकको यदि छोटे कमरे मे रखें तो अधिक प्रकाश दीखता है और यदि उसे ही बडे कमरे मे रखे तो थोड़ा प्रकाश दीखता है । जीवका प्रकाश है ज्ञान, इसलिए सूक्ष्म शरीरवाले जोवोको अधिक ज्ञान होना चाहिए, अपेक्षा बडे शरीरवाले जीवोके । परन्तु यह बात है इससे उलटी । सूक्ष्म जीवोका ज्ञान अत्यन्त अल्प होता है और मनुष्योंका अधिक । यद्यपि ऐसा कोई नियम नही कि बड़े शरीर-बालेको अधिक ही ज्ञान हो, क्योकि बड़े शरीरवाले हाथी से अधिक ज्ञान छोटे शरीर वाले मनुष्यको होता है। परन्तु फिर भी सूक्ष्म जीवो को अपेक्षा तो हर बडे शरीरधारी मे ज्ञान अधिक ही होता है।
तीसरे एक बात और भी है । वह यह कि जोवको दु.ख-सुखका वेदन समस्त शरीर मे ही होता है, किसी मस्तिष्क आदि नियत अणुमात्र स्थानमे नही । यदि शरीर के अन्य भागोमे जीव नही है, तो सुख-दुःखको वहाँ कौन महसूस करता है ? वहां सुख-दुख होना ही नही चाहिए । यदि कहा जाये कि नाडियोंके द्वारा उस दु.खसुखका वेदन मस्तिाक तक पहुँच जाता है और वहां बैठा हुआ वह अणुमात्र जीव उसका वेदन कर लेता है, जिस प्रकार टेलीफोन द्वारा आपकी बातको दूरस्थ व्यक्ति भी सुन लेता है। सो भी ठोक नहीं है, क्योकि इस प्रकार तो दुख सुखकी प्रतीति सब जीवोको केवल मस्तिष्क मे ही हुआ करती । पाँवमे फोडा होता और पीडा मस्तिष्कमे होती। क्योकि टेलीफोन द्वारा सुननेवाला आपकी बात सुनता तो अवश्य है, परन्तु उसे अपने पाममे ही सुनता है, आपके पास मे नही। परन्तु ऐमा यहां नही है। शरीरके जिम भागमें पीडा होती है उसी भागमे वह महसूस होती है।