________________
४ जोव पदार्थ सामान्य
दोनो बातोका मेल कैसे बैठे, क्योकि शरीर तो सारे लोक या ब्रह्माण्ड से बहुत छोटा है ?
७७•
इसका उत्तर यह है कि जीव पदार्थमे एक विशेष प्रकारकी सकोच - विस्तार शक्ति है जिसके कारण कि यह सिकुडकर छोटेसे छोटा हो सकता है ओर फैलकर महान्से महान् हो सकता है, जैसे कि दीप प्रकाशको यदि घडेमे रखें तो घडे जितना और बड़े कमरे मे रखें तो बडे कमरे जितना हो जाता है । उसी प्रकार यदि जीवको छोटे शरीरमे रहना पडे तो छोटा और बड़े शरीर मे रहना पडे तो EST हो जाता है ।
अब प्रश्न हो सकता है यह कि छोटा होनेपर इसका शेष भाग कटकर पृथक् हो जाता होगा और बडा होनेपर उसी पृथक् भागमे से कुछ उसमे मिल जाता होगा । सो भी नही है, क्योकि पहले ही बताया जा चुका है कि जीव एक अखण्डित पदार्थ है, जिसे न तोडा जा सकता है और न जोडा । वह तो उसकी सकोच-विस्तार शक्तिका ही कार्य है कि बिना टूटे भी वह सिकुड़कर छोटा हो जाता है और बिना मिले ही वह फैलकर बडा हो जाता है । इस कमरे की सारी वायु यदि मोटरकी एक ट्यूबमे भर दी जाये तो क्या कुछ शेष रह जायेगी ? इसी प्रकार लोक-परिमाण जीवको भी सिकोडकर यदि उस सूक्ष्म शरीरमे भर दिया जाये जो कि आँखो से क्या माइक्रोस्कोपसे भी दिखाई नही दे सकता, तो इसका कोई भी भाग या प्रदेश छूट नही जाता, और यदि उसे फैलाकर हाथी के शरीरमे भर दिया जाये तो उसमे कुछ जुड़ नही जाता ।
अत. लोक-परिमाण असख्यातप्रदेशी होते हुए भी उसको छोटेबडे शरीर परिमाण होकर रहनेमे कोई विरोध नही है । छोटे-बडे किसी शरीर मे भी रहे, परन्तु प्रदेशो द्वारा जब भी उसे मापेंगे तब