________________
४ जीव पदार्थ सामान्य
पिण्डमे जानने, देखने तथा महसूस करनेवाला कौन है-यह शरीर या अन्त करण ? यद्यपि आँखोसे या भौतिक दृष्टिसे देखनेपर ऐसा प्रतीत होता है कि यह शरीर हो अपनी आंखोसे देखता है तथा अन्य इन्द्रियोसे जानता है और दुख-सुख महसूस करता है । यद्यपि भौतिक दृष्टिसे देखनेपर ऐसा महसूस होता है कि बाह्य और अन्तरंग जीवन कोई दो स्वतन्त्र पदार्थ नही हैं वल्कि एक ही पदार्थके दो रूप हैं, और अब तक बताया भी ऐसा ही गया है, परन्तु वास्तवमे ऐसा नही है । शरीर कुछ और पदार्थ है और अन्त करण कुछ और। शरीर भौतिक है, पृथिवी, जल, अग्नि, वायु तथा आकाश इन पाच भूतोके सग्रहसे उत्पन्न हुआ है । परन्तु अन्त.करण चेतन है, ज्ञान-दर्शन तथा सवेदन रूप है । शरीर रूप-रगवाला है और अन्त करणका कोई रूप नही। अथवा जो कुछ यह विचारे या देखे वही इसका रूप है। दोनोकी जातिमे भेद है, इसलिए दोनो ही एक कदापि नही हो सकते । यह शरीर तथा अन्तःकरण दो पृथक्-पृथक् स्वतन्त्र पदार्थ हैं, शरीर जड है और अन्तःकरण चेतन ।
यह बात सुनकर आपको हँसी तो आ रही होगी, परन्तु कुछ विचार करके यदि निर्णय करोगे, तो बजाय मेरे ऊपर हँसनेके स्वय अपने ऊपर हँसने लगोगे। देखिए 'एक' उन्हे कहते हैं जो सदा एक रहे जैसे कि अग्नि व उष्णता सदा एक साथ रहते हैं। जहाँ अग्नि होती है वहाँ उष्णता अवश्य रहती है। एक क्षणको भी अग्नि बिना उष्णताके नही रह सकती। इसी सिद्धान्तको इधर १. जैसा कि आगे वताया जायेगा, अन्त करण यद्यपि चेतन नहीं है,
तदपि इसका आश्रय लिये बिना क्योकि चेतनका परिचय दिया जाना सम्भव नही है, इसलिए प्रथम भूमिपर उसे ही चेतन मानकर कथन किया जा रहा है।