SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पदार्थ विज्ञान ___सबको जानकर भी अपनेको न जानना ही तेरी सबसे बड़ी भूल है । इसीको अन्धकार कहा जा रहा है। कहां है तू ? तनिक प्रकाशमे आकर देख, उस प्रकाशमे जो कि गुरुजन तुझे दे रहे है । भैया ! एक बार तनिक उसको गहनताओमे डुबकी लगाकर उस परम तत्त्वकी ओर देख, क्योकि वह बाहरमे दीखनेवाला नही है। जो कुछ तुझे दिखाई दे रहा है, तथा जिसपर तुझे विश्वास है, वह सब तू नही है और जो तुझे दिखाई नही दे रहा है तथा जिसपर तुझे विश्वास नहीं है, वही तू है । अर्थात् बाह्य जोवनमें नही, तू अन्तर-जीवनकी गुफामे छिपा बैठा है। वहाँ ही उतरकर देख, इन आँखोसे नही अन्तरकी आँखासे, अन्त.करणसे, अन्तरकी विचारणाओ तथा सवेदनाओ से । २. शरीर तथा जीव दो पदार्थ __ पहले धर्मका स्वरूप दर्शाते हुए तुझे यह बात बतायी गयी है,, कि जीवनके दो रूप हैं--एक बाहरका रूप, दूसरा अन्दरका रूप । बाहरका रूप है शरीर व इन्द्रियाँ तथा अन्दरका रूप है अन्त.करण अर्थात् बुद्धि व मन । शरीर व इन्द्रियाँ बाहरमे दिखाई देती हैं, पर अन्त.करण केवल अन्दरमे अनुभव किया जा सकता है। शरीर व इन्द्रियोको सब जानते है, इसलिए उन्हे बतानेकी आवश्यकता नही, अन्त करणको कोई नही जानता इसलिए उसे बतानेकी आवश्यकता है । उमका विस्तृत स्वरूप मनोविज्ञान तथा कर्मसिद्धान्तके रूपमे 'कर्मरहस्य' नामकी पुस्तकमे बताया गया है। पाठक्रजन उसे पढ़कर इसका परिचय अवश्य प्राप्त करें। अब देखना यह है कि बाह्य और अन्तरग इन दोनोमे वास्तविक जीवन, कौन-सा है। जीवन कहते हैं उसको जो कि जीवे । जीना कहते हैं उसे जो जाने, देखे तथा महसूस करे । अब विचारिए कि इस डेढ मनके
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy