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________________ ३ पदार्थ विशेष ४५. जीव सदा ही उपयुक्त शारीरोको धारण करता तथा छोडता रहता है। अर्थात् जन्म-मरण करता हुआ एक शरीरसे दूसरे शरीरमे और दूसरेसे तीसरेमे बराबर घूमता रहता है। जीवके इस प्रकार जन्म-मरण करनेका नाम ही ससार है। यही सबसे बड़ा दुःख है। इसीसे ज्ञानी जन ससारको बन्धन कहते हैं और इसे छोडकर कुछ विशेष प्रकारकी आत्म-साधना किया करते हैं, जिससे उनका जन्म-मरण टल जाता है। फिर उन्हे नवीन शरीर धारण करना नहीं पड़ता। इसीका नाम मोक्ष है। संसारी जीवोका स्वभाव सदा मलिन रहता है। उसमे अहंकार, क्रोध, मान, माया, लोभ, तृष्णा, ममता, शोक, भय आदि भाव बने रहते हैं। उसके इन मलिन भावोका नाम कषाय है। इन कषायोके कारण मन सदा चचल व चिन्तित रहता है, इसलिए ये भाव जीवनपर भार है। ज्ञानी जन भरसक इनको दबानेका प्रयत्न किया करते हैं, और धीरे-धीरे अभ्यास करते हुए एक दिन पूर्ण उज्ज्वल हो जाते हैं। वही इनकी मुक्ति व मोक्ष है। कषायोंके घटानेके अभ्यासका नाम ही मोक्ष मार्ग है। ८.अजीवका संक्षिप्त परिचय __ अजीव यद्यपि इस दृष्ट जगत्को कहा गया है, परन्तु वास्तवमे वह दो प्रकारका होता है-एक मूर्तिक और दूसरा अमूर्तिक । जो इन्द्रियोसे जाना देखा जा सके वह मूर्तिक जैसेइंट, पत्थर, कपड़ा आदि सर्व दृष्ट जगत् मूर्तिक है। जो इन्द्रियोंसे जाना न जा सके वह अमूर्तिक है, जैसे-आकाश अर्थात् स्पेस (space)। मूर्तिक जड पदार्थको आगम भाषामे भौतिक पदार्थ या पुद्गल कहा जाता है, यह बात पहले बतायी जा चुकी है। यह सारा दृष्ट जगत् भौतिक अजीव पदार्थ है, पुद्गल है। यद्यपि यह अनेक रूपो व भेद-प्रभेदोवाला तथा अत्यन्त चित्र-विचित्र दिखाई
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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