________________
३६
पदार्थ विज्ञान
मूर्तिक है क्योकि इन्द्रियोसे छूकर या देखकर जाना जा सक्ता है । परन्तु जीव अमूर्तिक होनेके कारण इन्द्रियोंस नहीं जाना जाता । यहाँ यह शंका करनी योग्य नही कि पृथिवी, जल, व्यग्नि, वायु, वनस्पति आदि पदार्थ तो जीव रूपसे प्रसिद्ध है और यहां उन्हें मूर्तिक तथा अजीव कहा जा रहा है। वे सब वास्तवमे जीव नही हैं, जीवके शरीर हैं। समझाने मायके लिए उन्हें जीव कह दिया जाता है । जीव तो वह है जो कि इसके भीतर रहता है, और वह अमूर्तिक है ।
अजीव पदार्थ मूर्तिक हो हो सो बात नही । कुछ पदार्थ अमूर्तिक भी हैं, जो इन्द्रियो द्वारा देखे जाने नही जा सकते, जैसे आकाश यदि कोई हमसे पूछे कि ये पदार्थ कहाँ हैं, हमे दिखाओ, तो नाप ही बताइए कि मे कैसे सम्भव हो ? जब हैं ही वे अमूर्तिक तो उनको देखा व दिखाया कैसे जा सकता है ? अतः यह मत समझिए कि जगत् उतना ही है जितना कि दिखाई देता है । अरे । दिखाई तो उसका अनन्तवां भाग भी नही देता है । जगत् वहुत बड़ा है, यहाँ बहुत कुछ है । इन्द्रियां उसे जाननेको पर्याप्त नही हैं महिमावन्त चेतन ही उसे सहज जान तथा देख सकता है । अत. अमूर्तिक पदार्थ इन्द्रियोंसे भले ही देखे तथा जाने न जा सकें पर वे सर्वथा जाने हो न जा सकते हो सो बात नही है । किसी भी व्यक्तिके द्वारा किसी भी प्रकारसे जाना न जा सके वह पदार्थ ही नही है, वे वल कपोल कल्पना है । आकाशके फूलवत् तथा गधेके सीगवत् असत् है ।
अमूर्तिक भी पदार्थ जाने अवश्य जा सकते हैं, परन्तु इनके जाननेका साधन इन्द्रियाँ नही हैं । वे केवल तर्क तथा विशेष विचारणाओ द्वारा ही जाने जा सकते हैं। आगे जीवके प्रकरणमे ज्ञानके पांच भेद बताये जायेंगे । उन भेदोमे मतिज्ञान इन्द्रियजन्य