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________________ २४३ ११ काल पदार्थ परमाण तथा कालाणुमे इतना अन्तर और है कि परमाण तो मूर्तिक है अर्थात् रूप, रस, गन्ध व स्पर्शको रखनेवाला है, परन्तु कालाणु अमूर्तिक है। परमाणु एक आकाश-प्रदेशपर अनन्तानन्त रहते हैं परन्तु कालाणु एक प्रदेशपर नियमसे एक ही रहता है । परमाणु गमनागमन कर सकते हैं, परन्तु कालाणु नियमसे गमनागमन नहीं करते। परमाणु तो अपने स्थान बदल लेते हैं परन्तु कालाणु अपना स्थान नही बदलते। परमाणु तो परस्परमे मिलजुडकर बडे व छोटे स्कन्धोका निर्माण कर देते है, परन्तु कालाणुओ मे परस्पर मिलनेकी शक्ति नहीं है, क्योकि इनमे स्निग्ध तथा रुक्ष गुण नही पाये जाते, जिनके कारणसे कि वे परस्परमे मिल-जुड सकते। परमाणुओसे निर्मित स्कन्ध क्योकि बनते-बिगडते रहते हैं अत वे अनित्य हैं, परन्तु कालाणुसे कुछ बनता-बिगडता नही, अत वह नित्य है। ४ कालका गुण पदार्थके भावात्मक परिवर्तनमे सहायक होना ही इसका प्रमुख धर्म है। जिस प्रकार धर्म-अधर्म द्रव्य ज़बरदस्ती पदार्थोको गमन आदि नही कराते बल्कि स्वय स्वतन्त्र रूपसे गमनादि करते हुओको सहायक मात्र होते हैं, इसी प्रकार काल द्रव्य भी जबरदस्ती परिवर्तन कराता हो, सो बात नही है। स्वत स्वतन्त्र रूपसे परिवर्तन करनेवालोको वह सहायक मात्र होता है । ज़रा यह तो विचारिए कि निमेष घड़ी, घण्टा, दिन आदि वास्तवमे क्या सत्ताभूत पदार्थ हैं ? नही, मात्र कल्पना हैं। इस कल्पनाका आश्रय वास्तवमे कुछ-एक पुद्गल पदार्थों का क्षेत्रात्मक परिवर्तन ही तो है या और कुछ । जितनी देरमे आँख की पलक ऊपरसे चलकर नीचे आवे उसे एक निमेष कहते हैं। जितनी देरमे
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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