SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 247
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९ आकाश द्रव्य २३१ कि एक पदार्थ दूसरेमे कैसे समाये । आकाशके प्रदेश केवल असंख्यात हैं और उनमे स्थान पाने वाले पदार्थ अनन्तानन्त है । इसका कारण केवल यही है कि वे अनन्तानन्त तदार्थं एक दूसरेमे समा सकते हैं, क्योकि अमूर्तिक पदार्थ होते ही सूक्ष्म है जो परस्परमे टकरा नही सकते । केवल मूर्तिक पुद्गल पदार्थ ही ऐसा है जो कि स्थूल हो सकता है तथा एक दूसरे से टकराता हुआ देखा जाता है । परन्तु इसके भी छह भेदोमे-से जो अन्तिम दो भेद अर्थात् सूक्ष्म स्कन्ध तथा सूक्ष्म-सूक्ष्म स्कन्ध है, वे भली प्रकार एक-दूसरेमे समाकर रह सकते हैं । यदि स्थूल होनेके कारण कोई पदार्थ दूसरेमे न समा सके तो इसमे आकाशके अवगाहनत्व गुणका दोष नही है । यह तो उसकी अपनी स्थूलताका दोष है | आकाशके अवगाहनत्व गुणकी तरफसे तो सबको छूट है कि कोई भी पदार्थ कही भी रह जाय, उसमे रहनेको योग्यता होनी चाहिए । यदि सारे लोकके पदार्थ सूक्ष्म बनकर चले आयें तो आकाशके एक प्रदेशपर समा सकते हैं । यही है अवगाहनत्व गुणकी विचित्र सामथ्र्यं । १४. श्राकाशका स्वभाव-चतुष्टय अन्य पदार्थोंकी भाँति आकाशका भी स्वभाव-चतुष्टयको अपेक्षा विश्लेषण किया जा सकता है । द्रव्य, क्षेत्र, काल तथा भाव ये चार बातें ही स्वभाव-चतुष्टय कहलाती हैं । इनकी अपेक्षा आकाशका पृथक्-पृथक् विचार कीजिए । द्रव्यकी अपेक्षा विचार करनेपर सामान्य रूपसे आकाश अनन्त प्रदेशोवाला एक अखण्ड द्रव्य है, परन्तु विशेष रूपसे लोकाकाश तथा अलोकाकाशमे विभाजित हो जानेके कारण वह दो प्रकारका है । तथा इसमे भी यदि पृथक्-पृथक् प्रदेशोको देखा जाय तो वह
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy