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९ आकाश द्रव्य
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आकारवाले भागमे ही नित्य होना सम्भव है इससे बाहरमे नही । इसीसे लोकका यह आकार बताया गया है।
लोक
स्वर्गलोक
(O
नरक लोक
इस लोकके आकारके भी तीन भाग कीजिए-ऊर्ध्व, मध्य
तथा अध.। मध्यलोक तो नाभिके सिद्ध
स्थानपर समझिए, नाभिसे मस्तक
पर्यन्त ऊर्ध्वलोक है और नाभिसे अर्ध्व लोक स्थित लोक) नीचे पैरोमे अधोलोक है। मध्य
कहते हैं बीचको, उर्ध्व कहते है मध्य लोक मर्त्यलोक
ऊपरको और अधो कहते है नीचे
को। मध्यलोकमे असख्यात पृथिअधोलोक
वियां तथा सूर्य-चन्द्रादिका ज्योतिष
चक्र है। इस पृथिवीसे कुछ लाख /स्थावर || लोक ।
मील ऊपर तक ही उसकी सीमा सनाली
है। उसमे असख्यात मील ऊपर मस्तक पर्यन्त ऊर्ध्वलोककी सीमा है। इस प्रकार यह समस्त लोक असख्यात मील ऊपर, असख्यात मील नीचे तथा असख्यात मील ही दायें-बायें आगे-पीछे है। असख्यात मील होनेसे तो बडा लगता है परन्तु अनन्त तथा असीम सम्पूर्ण आकाश के सामने वह कुछ भी नहीं है।
ऊर्ध्वलोकमे ऊपर-ऊपर उत्तरोत्तर बढते हुए सुखके अनेको स्थान है, जिन्हे स्वर्ग कहते हैं। इन सभी स्वर्गोंमे पृथिवी, सूर्य, चन्द्र आदिकी भांति अनेको गोले हैं, जिन्हे विमान कहते हैं । जिस प्रकार पृथिवीपर मनुष्य बसते हैं, उसी प्रकार उन विमानोमे देव लोग बसते है। मध्यलोकमे असंख्यात पृथिवियाँ तथा सागर है। पृथिवियोको द्वीप कहते हैं क्योकि उनके चारो ओर सागर रहता