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पदार्थ विज्ञान
सूर्य-चन्द्रादिके समूहरूप इस सर्वसीमित लोकको यदि अलोकाकाशमे कही दूर खड़े होकर देखा जाये तो वह बहुत छोटा दिखाई देगा। जिस प्रकार एक बडे कमरेके बीचमे एक छोटा-सा छीका लटका रहता है, उसी प्रकार सम्पूर्ण आकाशके बीच यह लोक लटका हुआ जानो।
इसका यह भी अर्थ नही कि वह किसी रस्सी आदिसे बाँधकर किसीने लटकाया हो। यह तो स्वत. स्थित है। लटका हुआ कहना तो केवल समझानेके लिए है। विना बँधा नीचे गिर जायेगा ऐसी भी आशका न करना, क्योकि जैसे सूर्य, चन्द्र तथा यह पृथिवी बिना किसी रस्सी आदिके द्वारा बँधे हुए भी अपने-अपने स्थानपर ठहरे हुए हैं और अपनी-अपनी सीमामे रहकर ही नृत्य कर रहे हैं अर्थात् बराबर घूम रहे हैं, इसी प्रकार यह लोक बिना बँधा हुआ भी अपने स्थानपर टिका है, और इसके मध्य जीव, पुद्गल, पुद्गलके बड़े स्कन्ध पृथिवी, चन्द्र, सूर्य आदि, पुद्गलके छोटे स्कन्ध पर्वत, नदी, सागर आदि तथा उनसे भी छोटे स्कन्ध षट्कायके शरीर और घट-पट आदि अनेक पदार्थ नृत्य कर रहे हैं। अनेको स्वाग भरते हैं, रूप बदलते है, जन्मते है, मरते हैं और इधरसे उधर भागे-भागे फिरते हैं।
७. लोकका आकार तथा विभाग
असीम आकाशके वीचमे लटकनेवाला यह छोटा-सा लोक मनुष्यके शरीरके आकारवाला है। मनुष्य अपनी टाँगें फैलाकर और कूल्होपर हाथ रखकर सीधा खडा हो जाये । इस प्रकारसे , उसकी जो आकृति बन जाती है वही आकार लोकका है। इस आकारको केवल काल्पनिक समझना, क्योकि कोई ऐसी दीवार आदि बनी हुई नही है। जीव तथा पुद्गलो का नृत्य इतने