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९ आकाश द्रव्य
२१३ शब्द हमारे कानोंमे गूंजा करते। एक समय भी खामोशी प्रतीत न होती। तब तो हम सब पागल हो गये होते। परन्तु ऐसा नही है। इसपर-से भी जान सकते हैं कि शब्द आकाशका गुण नही, पुद्गलका भी गण नही, बल्कि उसकी क्षणिक पर्याय है, जो उत्पन्न होकर सदाके लिए विनष्ट हो जाती है।
यह कहना कि रेडियोकी आवाजें आकाशमे स्थित हैं और आकाश मार्गसे ही हम तक पहुँचती हैं, मिथ्या है, भ्रम है। रेडियोकी आवाजें कभी आवाजोके रूपसे आकाशमे आती नही है। वे तो ट्रास्मिटिंग स्टेशनपर विद्युत् तरगोकी चुम्बक शक्तियोंके रूपमे फेंकी जाती हैं। विद्युत् तरगोकी वे चुम्बक शक्तियां हमारे रेडियो सेट तक आती हैं, साक्षात् शब्द नही। रेडियो सेट उन चुम्बक शक्तियोकी तरगोको पुन शब्द रूपमे परिवर्तित कर देता है, जिसे हम सुनते हैं। । ऐसा मानना भी भ्रम है कि रामायण तथा महाभारतके समयके सब शब्द आज तक आकाशमे स्थित हैं जिन्हे कभी न कभी विज्ञान अवश्य प्रकट कर देगा। विज्ञान सम्भव ही कार्य कर सकता है असम्भव नही। जिस प्रकार विज्ञान द्वारा आपके बीते जन्मोका पुनः प्रकट किया जाना असम्भव है, जिस प्रकार विज्ञान द्वारा बीती ऋतुओका पुन वापस बुलाया जाना असम्भव है, जिस प्रकार विज्ञान द्वारा मिट्टोमे मिल गये शरीर को पुन. वही शरीर बना दिया जाना असम्भव है, उसी प्रकार प्रकट होकर विनष्ट हो जाने वाले क्षणिक शब्दोको विज्ञान द्वारा प्रकट किया जाना असम्भव है।
इस सब कथनपर-से यह सिद्ध कर दिया गया कि शब्द आकाशका न गुण है न उसके किसी गुणकी पर्याय है। पुद्गलका