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पदार्थ विज्ञान
जाती है और कुछ दूर जाकर वह रुक जाती है। इसी प्रकार बड़ेबडे शक्तिशाली राकेट भी जब तक वायुमण्डलमे रहते हैं तबतक उनकी गति बराबर घटती चली जाती है और कुछ मील ऊँचे जाकर वह रुक जाते हैं। यही कारण है कि अणु शक्तिके विकाससे पहले वैज्ञानिक लोग अपने राकेट अधिक ऊँचे न पहुंचा सके । अणु शक्ति द्वारा जब वह राकेट वायुमण्डलसे ऊपर पहुंचा दिया गया तो वहाँ जाकर वह बिना किसी शक्ति के बराबर चक्कर काट रहा है। वहाँ उसकी गतिमे किंचित् मात्र भी कमी नही आती, क्योकि वहाँ वायुमण्डल नही है और इसलिए उसकी वह विरोधी शक्ति भी वहां काम नहीं आती। वहाँ केवल आकाश है, जिसमे विरोधी शक्ति पायी नही जाती। यदि शब्द आकाशका गुण होता तो वह आगे-आगे जाकर मन्द न पड़ता बल्कि सर्वत्र ज्योका त्यो सुनाई देता, क्योकि आकाश सर्वत्र ज्यो का त्यो है ।
शब्द गुण नही पर्याय है, क्योकि क्षणिक है। गुण त्रिकाली होते है। गुण कभी उत्पन्न नही होता, गुणकी परिवर्तनशील पर्याय ही उत्पन्न होती है, और विनष्ट होती है। परमाणुमें रस उत्पन्न नहीं होता और जीवमे ज्ञान उत्पन्न नही होता। वे तो नित्य है। हाँ । स्कन्धोमे खट्टा-मीठापना और शरीर-बद्ध संसारी जीवोमे इन्द्रिय ज्ञानके परिवर्तन ही उत्पन्न होते तथा विनष्ट होते हैं । आकाश क्योकि नित्य है और व्यापक है, इसलिए उसका गुण भी नित्य तथा व्यापक होना चाहिए। यदि शब्द आकाशका गुण है, तो वह भी नित्य तथा व्यापक होना चाहिए। यदि ऐसा हुआ होता तो प्रत्येक शब्द हम सबको सर्वत्र ही सुनाई दिया करता । और सब गड़बड़-घोटाला हो जाता। इस प्रकार हमे केवल सब तरफ शोर ही शोर सुनाई देता, किसीकी बात हम सुन तक न सकते क्योकि भिन्न-भिन्न स्थलोमे होनेवाले सभी