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पदार्थ विज्ञान
या मिलना और गलका अर्थ है गलना या विछुडना। जो पूर्ण भी हो सकता हो और गल भी सकता हो अर्थात् जो मिल भी सकता हो और बिछुड भी सकता हो उसे पुद्गल कहते हैं। क्योकि सर्व ही दष्ट पदार्थ मिल-मिलकर बिछुडते है और विछुड-विछुडकर मिलते हैं, जुड-जुडकर टूटते हैं और टूट-टूटकर जुडते हैं, इसलिए इन्हे पुद्गल नाम देना उपयुक्त है। पुद्गल शब्दके वाच्य ये दृष्ट पदार्थ क्योकि मूर्तिक है, इन्द्रियोसे जाने देखे जाते है इसलिए अजीव पदार्थके भेदोमे यह पदार्थ मूर्तिक है। २. पुद्गल पदार्थकी विचित्रता
यह पुद्गल नामका पदार्थ बड़ा विचित्र है । जगत्के इस विचित्र तथा विस्तृत नाटकमे यही मुख्य पात्र है। सर्वत्र इसका ही फैलाव दिखाई देता है । क्या पृथ्वीमे, क्यो जलमे, क्या वायुमें, क्या अग्निमे, क्या पातालमे, क्या आकाशमे क्या कीडेसे लेकर मनुष्य पर्यन्त जीवोके शरीरोमे, क्या खाने पीनेके पदार्थोमे, क्या महल-मकानमे, क्या धनमे, क्या वस्त्रमे, सर्वत्र यही नृत्य कर रहा है। ३. सब जीवके शरीर हैं । वैसे तो पुद्गल पदार्थ इतने प्रकारके दिखाई देते हैं कि उनके नाम भी नहीं गिनाये जा सकते परन्तु सग्रह करके यदि देखा जाये तो ये सर्व ही पदार्थ छह कायोमे समा जाते हैं। जीवके भेद-प्रभेदोका कथन करते हुए षट्कायका परिचय दिया जा चुका है । पृथ्वी जल, अग्नि, वायु तथा वनस्पति ये पांच स्थावर और एक त्रस ये छह कायके जीव कहलाते हैं। वहाँ भी इस बातको भली भांति', स्पष्ट कर दिया गया है और यहाँ भी पुन. बताया जाता है कि यद्यपि जीव और शरीरके साथ-साथ रहने के कारण इन सब भेदोको षट्कायके जीव कहा जाता है, परन्तु वास्तवमे ये सब भेद जीवके