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६ जीवके धर्म तथा गुण
१७३ २८. शरीर के धर्म
पहले वताया जा चुका है कि सर्व ही ससारी जीव शरीर, अन्त करण व चेतन इन तीन पदार्थोके मिश्रणसे बने हुए हैं। अतः इन तीनोके पृथक्-पृथक् धर्म या गुण जानने आवश्यक हैं। इनमे-से तीनोके मिश्रणरूप जीव-सामान्यके धर्म बता दिये गये। फिर उनके पृथक्-पृथक् धर्मोमे भी चेतन तथा अन्तःकरणके धर्म बता दिये गये। अब शरीरके धर्म भी जानने चाहिए।
जैसा कि पहले बताया जा चुका है शरीर वास्तवमे जीव नही है बल्कि अजीव है, क्योकि मृत्यु हो जानेपर इसमे-से चेतन तथा अन्त करण ये दो निकल जाते हैं, तब जो कुछ शेष रह जाता है वहीं तीसरा पदार्थ यह शरीर है। यह स्पष्ट है कि वह अजीव है, क्योकि उस समय वह जान-देख नही सकता। अजीव भी कई प्रकारके होते हैं जैसा कि आगे अजीवका परिचय देते हुए बताया जायेगा। उनमे-से भी वह मूर्तिक अजीव है अर्थात् इन्द्रियोसे दिखाई देनेवाला है। यह कोई अखण्ड पदार्थ नही है क्योकि काटा तथा जोडा जा सकता है, इसलिए अनेक अखण्डित सूक्ष्म अजीव पदार्थों या परमाणुओंसे मिलकर बना है । अत शरीरमे परमाणु ही मूल तत्त्व है, शरीर स्वय कोई मूलभूत पदार्थ नही है। ___ मूर्तिक तथा जुडने-तुडनेकी शक्तिवाले अजीव पदार्थका नाम पुद्गल है। उसमे स्पर्श, रस, गन्ध तथा वर्ण ये चार मुख्य गुण हैं। छुकर जो जाना जाये वह चिकना रूखा आदि स्पर्श गुण है, चखकर जो जाना जाये वह खट्टा मीठा आदि रस गुण है, सूंघकर जो जाना जाये ऐसे सुगन्ध व दुर्गन्ध गन्ध गुण है, और देखकर जो जाना जाये ऐसा काला-पीला रग वर्ण नामका गुण है। यही शरीरके धर्म हैं । इनके अतिरिक्त इसका और कुछ महत्त्व नहीं है।