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________________ १६० पदार्थ विज्ञान अलौकिक । बाह्य वोर्य अलौकिक नही होता क्योकि अलौकिक अर्थात् मुक्त जनोंके शरीर नही होता । मतिज्ञान तथा दर्शन आदिके द्वारा जानने-देखनेकी जीवकी हीन या अधिक शक्तिका नाम लौकिक अन्तरग वीर्य है, क्योकि ये मति आदि ज्ञान लौकिक या ससारी जीवोको ही होते हैं। केवलज्ञान तथा केवलदर्शनकी अतुल शक्तिका नाम अलौकिक वीर्य है, जो अनन्त है, क्योकि इससे अनन्तका युगपत् ज्ञान होता है। ज्ञानमे होनता या अधिकताके साथ साथ स्थिरता तथा अस्थिरता भी होती है। ज्ञान किसी भी विषयको अधिक देर तक नही जान पाता। एक विषयको छोड़कर दूसरे विषयकी तरफ दौडता है, और फिर उसको भी छोड़कर तीसरे विषयकी तरफ दौडता है। ज्ञानकी यह चचलता मनकी चचलताके कारण है। मनकी चचलतासे सब परिचित हैं। जिस व्यक्तिका मन अधिक चचल है उसके मनकी शक्ति तो अधिक है पर उस जीवका वीर्य कम है। जीवका स्वभाव जानने-देखनेका है अर्थात् जाननेमे टिके रहना या ज्ञानमे स्थिरता धारना है, परन्तु मन उसे वहाँ टिकने नही देता। अत: जिस जीवके ज्ञानमे अधिक स्थिरता है उसका अन्तरग वीर्य अधिक है, अपेक्षा उस व्यक्तिके जिसके ज्ञानमे कि स्थिरता अल्प है। ज्ञानमे स्थिरता न होना ही मनकी चचलता है। इसीलिए जीवके वीर्यकी कमी और मनकी शक्तिकी प्रबलताका एक ही अर्थ है। इस प्रकार सभी लौकिक संसारी जीव हीन वायवाले परन्तु बलवान् मनवाले हैं। ___ अलौकिक वीर्य अलौकिक अर्थात् मुक्त जीवोके ही होता है । उनकी शक्ति अनन्त है, क्योकि उन्हें ज्ञानकी पूर्ण स्थिरता प्राप्त हो गयी है। उनका ज्ञान न हमारी भांति आगे-पीछे होता है और न कांपता है। ज्ञानको कंपानेका कारण मन था, उससे वे मुक्त हो
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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