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________________ ६ जीवके धर्म तथा गुण १ जीव, अन्त करण तथा शरीरका पार्थक्य, २ जीव सामान्यके धर्म तथा गुण, ३ दर्शन, ४ ज्ञान, ५ सुख, ६. वीर्य, ७ अनुभव; ८ श्रद्धा एव रुचि, ९ सकोच विस्तार, १० गुणोंके भेद-प्रभेद, ११ ज्ञानके भेद, १२ मतिज्ञान, १३ श्रुतज्ञान, १४ अवविज्ञान, १५ मन पर्यय ज्ञान, १६ केवलज्ञान, १७ क्रम और अक्रम ज्ञान, १८ दर्शनके भेद, १९ सुखके भेद, २० वीर्य, २१ अनुभव श्रद्धा तथा रुचिमें भेद, २२ कषाय, २३ आवरण तथा विकार, ३४ सावरण तथा निरावरण ज्ञान, २५ स्वभाव तथा विभाव, २६ चेतनके गुण, २७ अन्त करणके गुण, २८ शरीरके धर्म, २९ जीव-विज्ञान जाननेका प्रयोजन । १. जीव, अन्तःकरण तथा शरीरका पार्थक्य इस जन्म-मरणरूप संसारमे गोते खाते अनन्त काल बीत गया पर आज तक जीवनको जान न सका। जीवन सार है, जीवन रस है, जीवन आनन्द है, जीवन सुन्दर है-ऐसा केवलज्ञानी जनोंसे सुना परन्तु उसे देख न सका । हे नाथ | अब करुणा कीजिए, जगत् के इस तप्त कीटपर और दर्शाइए इसे जीवनका वैभव । भैया । जीवन शरीरमे नही है, बल्कि अन्त करणमे गुप्त उस परम तत्त्वमे है जिसका परिचय कि पहले चेतनके नामसे दिया गया है। उसके अनेको गुण ही उसकी ध्रुव सम्पत्ति है जो उससे कभी भी नही छूटती । आ । हम तुझे उस चेतन तत्त्वके अनेको गुणोका परिचय दें।
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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