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पदार्थ विज्ञान
वृद्धिंगत होता हुआ क्रमश. पन्द्रह दिनमे पित्ताकार और एक मासमे पिण्डाकार होता है । दूसरे महीने उसमे सिर तथा धड़का आकार प्रकट होता है, तीसरे महीने हाथ-पाँव आदि और चौथे महीने अँगुलियाँ प्रकट होती हैं । पाँचवें महीनेमे आँख - नाक आदि प्रकट होते हैं । तब कही जाकर शरीर पूरा होता है। दो-तीन महीने पुष्ट होकर बाहर आने योग्य बनता है ।
यही क्रम अण्डेमे भी समझना । माता-पिताका रज- वीर्य गर्भाशयमे मिलने पर वह केवल एक बिन्दु मात्र होता है । जीव उसमे तभी प्रवेश पा जाता है । उस विन्दुकी वृद्धि अन्यथा होनी सम्भव नही । वह जीव ही माताके शरीरमे से कुछ रस धीरे-धोरे खीचकर एकत्रित करता रहता है । कुछ दिन पश्चात् उस एकत्रित किये हुए रसके ऊपर अण्डेका छिलका बनने लगता है । माताके उदरसे बाहर आ जानेके पश्चात् यद्यपि अण्डा कुछ और रस ग्रहण नही करता, और उस समय तक उसमे केवल सफेद व पीले रसके अतिरिक्त कुछ और होता भी नही, परन्तु यह रस गर्भाशयमे स्थित उसी माँस- पिण्डवत् है जिसमे अभी अगोपाग नही निकले है, फिर भी उसमे जीव विद्यमान है । माता द्वारा अण्डा सेये जानेपर अन्दर ही अन्दर वह रस फूल - फूलकर वृद्धिंगत होता है और उसमे अगोपाँग भी प्रकट होने लगते हैं । इस प्रकार उपर्युक्त क्रमसे ही अण्डेमे शरीरका निर्माण होता है |
जिस प्रकार गर्भाशयमे पडे हुए उस मास- पिण्डकी हत्या एक महान् अपराध समझा जाता है, क्योकि वह मास - पिण्ड साधारण मास-पिण्ड नही है, बल्कि एक प्राणधारी मनुष्य है, उसी प्रकार अण्डेमें पडा हुआ वह सफेद व पीला रस भी कोई साधारण वस्तु नही है, बल्कि एक प्राणधारी जीव है, जो कुछ ही दिनो के पश्चात् सांगोपाग शरीर लेकर प्रगट होनेवाला है ।