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५ जीव पदार्थ विशेष
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हैं । और उनकी उत्पत्ति भले ही उदर आदिमे हो, परन्तु स्वतन्त्र रीतिसे वहाँ उनका सम्मूच्छिम जन्म होता है ।
१५ प्रण्डेमे जीवको सिद्धि
यहाँ एक बात और विशेष बताने की है । वह यह कि गर्भज हो या सम्मूच्छिम, गर्भाशयमे या बीज आदिमे जीवका प्रवेश उसी क्षण हो जाता है जब कि रज व वीर्य अथवा बीज व जल अदिका सयोग हो जाये। परन्तु पहले ही क्षणमे हमारी स्थूल दृष्टि उसके कोई भी लक्षण देख नही पाती । जब तक कि गर्भ कुछ बढ़ न जाय अर्थात् गर्भाशयमे एक मास पश्चात् माँस-पिण्ड न बन जाये, अथवा अण्डे आदिका कोई आकार न बन जाय या पृथिवीके नीचे रहते हुए बीज फूट कर उसमे सूक्ष्म-सा अकुर दिखाई न देने लग जाये, उस समय तक साधारण व्यक्तिको तो क्या डॉक्टरो तकको भी यह पता नही चल पाता कि यहाँ जीव उत्पन्न हो चुका है । इसीलिए आजके कुछ व्यक्ति ऐसा कहते सुने जाते हैं कि अण्डोमे जब तक सफेद व पीला पानी सा ही रहता है तबतक उसमे कोई जीव नही होता । वह तो उसमे तब आता है जब कि अण्डेके भीतर उस जीवके कुछ अंगोपाग बनने प्रारम्भ हो जाते हैं । अत. आप लोगो को उनके ऐसा कहनेपर भ्रममे नही पड़ना चाहिए। वास्तवमे बिना जीवको अवस्थितिके गर्भमे माँस पिण्डकी, अण्डेमे अगोपागो आदिकी, तथा बीजमे अकुरकी उत्पत्ति हो ही नही सकती ।
कोई भी पदार्थ एकदम नही बन जाया करता । गर्भमे मनुष्य की उत्पत्ति तथा वृद्धि किस क्रमसे होती है इस बातको हम सब जानते हैं । प्रथम क्षणमे हो अर्थात् रज तथा वीर्यके मिलते ही गर्भाशयमे जीव प्रवेश पा जाता है । तब वहाँ प्रथम रात्रिमे रज- वीर्यका मिश्रण मात्र होता है । सातवें दिन वह वुद्बुदाकार हो जाता है जो