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५ जीव पदार्थ विशेष
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नही है । कोई भी व्यक्ति इस प्रकारकी अनुसन्धान-शालामे जाकर प्रत्यक्ष अपनी आँखसे देख सकता है, अथवा 'माइक्रो-बाइलॉजी' विषयक साहित्य पढकर जान सकता है, अथवा किसी भी डॉक्टरसे पूछकर विश्वास कर सकता है ।
ऐसे सूक्ष्म जीवोकी सत्तापर जैनदर्शन सदासे बहुत जोर देता चला आया है और आगे आनेवाले खान-पान सम्बन्धी ( दे शान्तिपथ-प्रदर्शन ) विवेकका मूल आधार यही विज्ञान है । ऋषिजनोको बिना किसी यन्त्रके ही उनका साक्षात् होता था । वे जानते थे कि इन सूक्ष्म जीवोका मानवके शरीर तथा मनपर कितना गहरा प्रभाव पड़ता है, इसलिए उन्होने बहुत सूक्ष्म दृष्टि से खाद्य पदार्थोमे भक्ष्य - अभक्ष्यका विवेक जागृत कराया है जिसका उल्लेख 'शान्तिपथप्रदर्शन' नामक पुस्तकमे कुछ किया गया है । यहाँ आपको केवल इतना ही जान लेना चाहिए कि इस प्रकारके जीव सर्वत्र पाये जाते हैं एव उत्पन्न होते हैं ।
इस प्रकारके जीवोको आजका विज्ञान बैक्टेरिया नामसे पुकारता है। इनकी मुख्यतया तीन जाति है- बैक्टेरिया, मोल्ड तथा ईस्ट | इन तीनोमे से पहले दो तो वनस्पतिकायवाले आर्थात् स्थावर होते हैं, और तीसरा भेद चलने-फिरने वाले त्रस जीवोका है । इनके उत्तर भेद करनेपर हज़ारो भेद हो जाते हैं । जैनागम भी ऐसे सूक्ष्म जीवोको त्रस व स्थावर दोनो प्रकारका मानता है । ज्यो- ज्यो कोई भी खाद्य पदार्थ बामी होता जाता है या सडता जाता है त्योत्यो उसमे इनकी वृद्धि होती जाती है । उनको उत्पत्ति तथा वृद्धिको मोटी-मोटी पहचानें बताता हूँ ।
दूध से दही या पनीर बनाना वास्तवमे उसमे बेक्टेरियाकी वृद्धि द्वारा ही होता है । किसी फल या अन्य खाद्य-पदार्थकी गन्ध तथा