________________
१०६
पदार्थ विज्ञान
परन्तु तत्सम्बन्धी तीव्र वेदना तो उनको भी होती ही है। इसी प्रकार वहांकी मिट्टी इतनी दुर्गन्धित है कि हम जैसोका दिमाग फट जाये पर वे लोग उसे सहन करते हुए ही वहाँ रहते हैं। उस लोक मे खानेको अन्नका एक भी दाना तथा पीनेको एक भी बूंद पानी नही मिलता। उन लोगोको भूख-प्यास इतनी लगती हैं कि इम पृथिवीका सारा अन्न खाकर तथा सागरका सारा जल पीकर भी एक व्यक्तिकी तृप्ति न हो, परन्तु इस भूख तथा प्यासको वेदना सहते हुए, बिना खाये-पोये ही उन्हे वहाँ रहना पड़ता है। वहांकी नदियो का जल सडे हुए रक्त तथा राध सरीखा दुर्गन्धित होता है। उसमे यदि कोई हम-सा व्यक्ति गिर जाये तो हमारा शरीर क्षणभरमे जल जाये। ऐसे जलको वे लोग कदाचित् यदि प्यासकी वेदना से आतुर होकर पी लें तो उनका कलेजा जलने लगता है, जिससे अत्यन्त तीव्र वेदना होती है । वहाँ के वृक्षोंके पत्ते तलवारको भांति तीखी धारवाले तथा नुकीले होते हैं। उनपर बड़े-बड़े तीखे कॉटे भी होते हैं। उन्हें सेमर वृक्ष कहते हैं । उसका पत्ता यदि कदाचित् शरीरपर गिर पड़े तो इसको खण्ड-खण्ड कर दे । तथा अन्य भी अनेकों पदार्थ उस लोकमे ऐसे होते है जिनके स्मरण मात्रसे हृदय कांप उठता है परन्तु वे लोग अपने पूर्वकृत पापका फल भोगनेके लिए वहाँ ही रहते हैं । यह लोक एकके नोचे एक सात भागो मे विभक्त है। यही सात भाग सात नरकके नामसे प्रसिद्ध है। ज्यो-ज्यो नीचे-नीचेके लोकोमे जाते हैं त्यो त्यो अधिक-अधिक दुख या दुखकी सामाग्री प्राप्त होती है।
वहाँके रहनेवाले जीव नारकी कहलाते है। उनका शरीर । वैक्रियिक होता है। वैसे तो स्वभाव से ही उनकी आकृति विकराल तथा भयानक होती है, परन्तु वैक्रियिक शरीरकी विशेषता के कारण वे अनेको प्रकारकी अति भयानक आकृतियां भी एक दूसरेको कष्ट