________________
५ जीव पदार्थ विशेष
१०५ वनस्पति पर्यन्त के सर्व स्थावर जीव भी तिर्यच कहलाते है। मनुष्य हम लोग है ही। देव नारकियोसे बिलकुल उलटे होते हैं, अर्थात् ये अत्यन्त सौम्य प्रकृतिके और अत्यन्त सुन्दर व मनोहर आकृतिके होते हैं। सदा ही विनोद व विलासमे इनका जीवन व्यतीत होता है। ये पृथिवीसे ऊपर किसी स्वर्गलोकमे रहते हैं। मनुष्यो तथा तिर्यंचो की भांनि नारकियो तथा देवोका शरीर चमडे व हड्डीका बना हुआ नही होता, किसी विशेष प्रकारका ही होता है, जिसका साया तक नही पडता। उनका शरीर वैक्रियिक होता है अर्थात् वे अपनी मर्जीसे उसे छोटा या बडा, हलका या भारी, एक या अनेक आदि रूपोको बना सकते हैं ।
तिथंच तथा मनुष्य तो क्योकि इसी पृथिवीपर बसते हैं और सबको दृष्ट है, इसलिए उनकी सत्तापर सबको विश्वास है, परन्तु नारकी तथा देव क्योकि यहां नही बसते और दृष्ट भी नही हैं, इसलिए वे कोई हैं या नही ऐसा सशय बना रहता है। वे हैं ही है इस बातको यद्यपि प्रत्यक्ष कराया नही जा सकता परन्तु सभी मत-मतान्तरोमे यहाँ तक कि मुसलमानो तथा ईसाइयोके यहाँ भी इन्हे किसी न किसी रूपमे स्वीकार अवश्य किया गया है। भले ही आपको विश्वास न हो पर आगममे उनका वर्णन किस प्रकारसे किया जाता है, इसे अवश्य जानना चाहिए। ___ नरकलोक इस पृथिवीके नीचे स्थित है उसे पाताल लोक, दोज़ख या Hell कहते है । इस लोकमे गर्मी तथा सर्दी दोनो ही इतनी तीन होती हैं कि यदि हम लोग वहाँ चले जायें तो हमारा यह स्थूल शरीर वहाँकी गर्मीसे भस्म होकर राख बन जाये और सर्दीके कारण खण्ड-खण्ड होकर बिखर जाय। यह तो नारकी जीवोके वैक्रियिक शरीरकी विशेषता है कि इतनी गर्मी तथा सर्दीमे रहते हुए भी उनका शरीर जलता नही या खण्ड-खण्ड नही होता,