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पदार्थ विज्ञान
जडें अधिक लम्बी होती हैं। इसके अतिरिक्त जिस दिशासे धूप या प्रकाश आता है यह अपनी टहनी और फूलोका मुख भी उस दिशाकी ओर घुमा देता है। कुछ मास-भक्षी वृक्ष तथा घास भी पाये जाते हैं जो कि किसी मनुष्य अथवा पशु-पक्षीके निकट आते ही अपनी पतलीपतली डालियोंके अग्रभागोको जो कि बहुत नुकीले होते है, उनके शरीरमे घुसा देते हैं और उनके द्वारा उनका समस्त रक्त चूस लेते हे। इसपर-से यह सिद्ध होता है कि वृक्षमे आहार ग्रहणकी इच्छा अवश्य है।
वृक्ष भय भी खाता है । बोस साहबने इस बातको भली भांति सिद्ध किया है कि आँधी आदि आनेसे पहले ही वृक्षोका हृदय काँपने लग जाता है, उनकी धडकन बढ जाती है। विष देनेसे वे मर जाते है और क्लोरोफार्म देनेसे मनुष्यकी भांति अचेत हो जाते हैं। आक्सीजन देनेपर सचेत हो जाते हैं। बोस साहबने वृक्षोको साँस लेते देखा है, उन्होने वृक्षोंके हृदयकी धड़कन सुनी है, उनकी नाडी भी धड़कती हुई देखी है। छुई-मुईका पौधा तो प्रत्यक्ष ही आपका शरीर छू जानेपर भयके मारे अपने अग सिकोड लेता है।
वृक्षोमे मैथुन भाव भी अवश्य होता है। कुछ वृक्ष तभी फलतेफूलते हैं जबकि उनपर विशेष प्रकारकी बेलें चढा दी जायें, और इसी प्रकार कुछ लताएँ भी तभी फलती-फूलती हैं जबकि उनको किन्ही विशेष वृक्षोपर चढाया जाये। पपीता बहुत अच्छा फल देता है यदि पपीतेके खेतमे ही कुछ मादा पपीतेके वृक्ष भी लगा दिये जायें। लाजवन्ती नामका पौधा पुरुषका साया पड़नेपर ही अपने अंग सिकोड लेता है और स्त्रीका स्पर्श पाकर खिल उठता है।
वृक्षोमे परिग्रहकी भावना भी अवश्य है। इसी कारण रेगिस्तानमे जहाँ कही भी जल देखनेको नही मिलता वहाँ वृक्षोकी
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