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५ जीव पदार्थ विशेष
प्रपचको जीतकर शरीर तथा अन्त करणके बन्धनोसे छूट जाते हैं
और फिर कभी इन बन्धनोमे नही पडते। ऐसे जोवोको मुक्त जीव कहते हैं, क्योकि छूटनेका नाम ही मोक्ष है और छूटे हुए का नाम मुक्त । ऐसे जीव हमको दिखाई नहीं दे सकते, क्योकि वे शरीर रहित हैं और दिखाई देनेवाला शरीर ही होता है, जीव या आत्मा नही। ससार तथा मोक्षके स्वरूपका विवेचन 'शान्ति पथ प्रदर्शन' नामकी पुस्तकमे किया गया है, वहांसे जानना। यहाँ तो केवल इतना ही बताना इष्ट है कि जीव दो प्रकारके है-एक ससारी और दूसरे मुक्त । मुक्त जीवके कोई भेद नही होते क्योकि उसके साथ शरीर तथा अन्तःकरण नहीं होता। शरीरके भेदसे ही जीवके भेद हैं, इसलिए शरीरधारी जीवोके अनेक भेद हैं, जो आगे वर्णन किए जायेंगे। ४. इन्द्रियोको अपेक्षा जीवके भेद __इन पाँच इन्द्रियोमे-से किसी जीवके शरीरमे केवल एक इन्द्रिय होती है और किसीके शरीरमे दो-तीन आदि। सभी प्रकारके शरीर हमे इस पृथ्वीपर दिखाई देते हैं। जिनके पास एक इन्द्रिय होती है उन्हे एकेन्द्रिय जीव कहते हैं। इसी प्रकार दो इन्द्रियोवालेको द्वीन्द्रिय, तीनवालेको श्रीन्द्रिय और चारवालेको चतुरिन्द्रिय कहते है। जिनके पाँचो इन्द्रियां है उन्हे सकलेन्द्रिय या पचेन्द्रिय जीव कहते है। __ इन्द्रियको धारण करनेका एक सूनिश्चिन क्रम है। इस क्रमको अपने शरीरपर-से पढा जा सकता है। यदि हम अपने शरीरपर नीचेसे ऊपरकी ओर देखते चलें तो पहले नम्बरपर स्पर्शन इन्द्रिय अर्थात् यह सारा शरीर आता है, दूसरे नम्बरपर रसना या जिह्वा आती है, तीसरे नम्बरपर नाक या घ्राण, चौथे नम्बरपर नेत्र या आँख और पांचवें नम्बरपर कर्ण या कान आते हैं । जीवोंके शरीरो मे जो हीन या अधिक इन्द्रियां प्रकट होती हैं, वे भी इसी क्रमसे होती हैं । इस क्रमका प्रकृति कभी उल्लघन नही करती। कहनेका