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पदार्थ विज्ञान
है इसका उत्तर नही दिया जा सकता। वह तो सर्वत्र सबको जानता है और सदा जानता है। उसका स्वरूप ही जानना है । फिर कभी व कही किसीको नहीं जाननेका प्रश्न ही नही हो सकता। परन्तु यदि शरीर-स्थित उस छोटे-बड़े कर्ता-भोक्ता जीव पदार्थको जो कि शरीरमे आता है, जन्म धारण करता है और मरनेपर उसमे-से निकलकर अन्यत्र चला जाता है, आप आत्मा या जीव कहना चाहते है तो उसे व्यापक कहना ठीक नही हो सकता। व्यापक पदार्थ न वडा होता है न छोटा, और न कही अन्यत्र जा-आ सकता है। वह सर्वत्र ठसाठस भरा रहता है। उसे हिलने डुलने को तथा आने-जाने को अवकाश कहाँ ? __ इसी प्रकार यदि उस चित्प्रकाशकी सूक्ष्मताको ध्यानमे रखकर अणुरूप कहना चाहते हैं तब तो ठीक हो वह अणुरूप है । सूक्ष्म तत्त्वको अणु कहनेका व्यवहार देखा जाता है, परन्तु यदि बड़े-> छोटे शरीरमे रहनेवाले उसके आकारको दृष्टिमे रखकर उसे अणुरूप कहना चाहते हैं तो यह वात ठीक नहीं है, क्योकि इसका निराकरण पहले ही कर दिया गया है । । वास्तवमे बात भी ऐसी है। चेतन तत्त्वका स्वरूप समझाते हुए तथा जीव पदार्थके नाम बताते हुए, पहले यह बताया भी जा चुका है कि चेतन तथा आत्मा शब्दका वह अर्थ नहीं है जो कि जीव शब्दका है। इसलिए सूक्ष्म दृष्टिसे देखनेपर चेतन या आत्मा कोई और वस्तु है और जीव कोई और। चेतन या आत्मा भावात्मक तत्त्व है और जीव एक पदार्थ है। चेतन व आत्माका! शरीरसे तथा उसके जन्म-मरणसे कोई सम्बन्ध नहीं है, परन्तु जीवका उससे सम्बन्ध है। इसलिए चेतन तथा आत्मा नित्य एक च व्यापक है, परन्तु जीव अनित्य, अनेक व अव्यापक हैं ।