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नियमसार
व्यवहार नयसे घटपटादिका कर्ता है। यह अशुद्ध जीवका कथन है।
द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक नयसे जीवकी पर्यायोंका वर्णन दव्वथिएण जीवा, वदिरित्ता पुव्वभणिदपज्जाया । पज्जयणएण जीवा, संजुत्ता होंति दुविहेहिं । । १९ । । द्रव्यार्थिक नयसे जीव, पूर्वकथित पर्यायोंसे व्यतिरिक्त - भिन्न है और पर्यायार्थिक नयसे जीव स्वपरापेक्ष तथा निरपेक्ष- दोनों प्रकारकी पर्यायोंसे संयुक्त है ।।
भावार्थ -- यहाँ द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा जीवकी भिन्नता तथा अभिन्नता का वर्णन किया गया है इसलिए स्याद्वादकी शैलीसे जीवका स्वरूप समझना चाहिए ।। १९ । ।
इस प्रकार श्री कुंदकुंदाचार्य विरचित नियमसार ग्रंथमें
जीवाधिकार नामका पहला अधिकार समाप्त हुआ ।
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२ अजीवाधिकार
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पुद्गल द्रव्यके भेदोंका कथन अणुखंधवियप्पेण दु, पोग्गलदव्वं हवेइ दुवियप्पं । खंधा हु छप्पयारा, परमाणू चेव दुवियप्पो ।। २० ।।
अणु और स्कंध विकल्पसे पुद्गल द्रव्य दो विकल्पवाला है। इनमें स्कंध छह प्रकारके हैं और अणु दो भेदोंसे युक्त है।
भावार्थ -- प्रथम ही पुद्गल द्रव्यके दो भेद हैं १. स्वभाव पुद्गल और २. विभाव पुद्गल । उनमें परमाणु स्वभाव पुद्गल है और स्कंध विभाव पुद्गल है। स्वभाव पुद्गलके कार्यपरमाणु और कारण परमाणुकी अपेक्षा दो भेद हैं तथा विभाव पुद्गल -- स्कंधके अतिस्थूल आदि छह भेद हैं। इन छह भेदोंके नाम तथा उदाहरण आगेकी गाथाओंमें स्पष्ट किये गये हैं ।। २० ।।
स्कंधोंके छह भेद
अइथूलथूल थूलं, थूलसुहुमं च सुहुमथूलं च।
सुमं अइसुमं इदि, धरादियं होदि छब्भेयं । । २१ ।।