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कुंदकुंद-भारती
गाथा पृष्ठ
गाथा पृष्ठ वह संसारमें भ्रमण करता है। 1मण करताह ३० ३५० । शौच धर्मका लक्षण
७५ ३५८ संसारभ्रमणके कारण ३१-३४ ३५०-३५१ | संयम धर्मका लक्षण
७६ ३५८ चौरासी लाख योनियोंका वर्णन ३५ २५१ तप धर्मका लक्षण
७७-७८ ३५८ संसारमें जीवोंको संयोगवियोग
आकिंचन्य धर्मका लक्षण ७९ ३५९ आदि प्राप्त होते हैं
३६
ब्रह्मचर्य धर्मका लक्षण ८० ३५९ कर्मोके निमित्तसे जीव संसार
मुनिधर्म मोक्षका कारण ८१ ३५९ वनमें भटकता है
३७ ३५१ निश्चय नयसे धर्म गृहस्थ और संसारसे अतीत जीव उपादेय
| मुनिधर्मसे भिन्न है
८२ हैं और संसारसे आक्रांत जीव
बोधिदुर्लभानुप्रेक्षा हेय हैं ऐसा ध्यान करना चाहिए ३८ ३५१ | जिस उपायसे सम्यग्ज्ञान होता है लोकानुप्रेक्षा
३९-४२ ३५२ उस उपायकी चिंता बोधि है ८३ अशुचित्वानुप्रेक्षा
४३-४६ ३५२-३५३ | कर्मोदयजनित पर्याय होनेसे आस्रवानुप्रेक्षा
४७-६० ३५३-३५५ क्षायोपशमिक ज्ञान हेय है ८४ संवरानुप्रेक्षा
६१-६५ ३५५-३५६ कर्मोकी मलोत्तर प्रकृतियाँ निर्जरानुप्रेक्षा
६६-६७ ३५६ परद्रव्य है धर्मानुप्रेक्षा
६८ ३५७ निश्चयनयमें हेय-उपादेय का गृहस्थके ११ धर्म
६९ |विकल्प नहीं है
८६ ३६० मुनिधर्मके १० भेद
৩০ ३५७ बारह अनुप्रेक्षाएँ ही प्रत्याख्यान उत्तम क्षमाका लक्षण
३५७ तथा प्रतिक्रमण आदि हैं ८७-८८ ३६० मार्दव धर्मका लक्षण
३५७ बारह अनुप्रेक्षाओंका फल ८९-९० ३६१ आर्जव धर्मका लक्षण
समारोप
९१ , ३६२ सत्य धर्मका लक्षण
३५८
८५
३५७
३५८
भत्तिसंगहो (भक्तिसंग्रह)
१. तीर्थकर भक्ति
२. सिद्ध भक्ति
३.श्रुत भक्ति
गाथा पृष्ठ १-८ ३६५-३६६/६.आचार्य भक्ति अंचलिका ३६६ १-१२ ३६७-३६९/७. निर्वाण भक्ति अंचलिका ३६९/ १-११ ३६९-३७१/८. नंदीश्वर भक्ति अंचलिका ३७१ |९ शांति भक्ति १-१० ३७२-३७३/१०. समाधि भक्ति अंचलिका ३७३ | ११. पंचगुरु भक्ति १-२३ ३७४-३७८ अंचलिका ३७८ | १२. चैत्य भक्ति
गाथा पृष्ठ १-१० ३७८-३८० अंचलिका ३९० १-२१ ३८०-३८४ अंचलिका ३८४ अंचलिकामात्र ३८६ अंचलिकामात्र ३८६ अंचलिकामात्र ३८७
३८७-३८८ अंचलिका अंचलिकामात्र ३८९
४. चारित्र भक्ति
५. योगि भक्ति
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