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________________ निन्यानवे गाथा ३३८ १८ ३३८-३३९ ३३६ २० ३३९ २१-२२ २३ विषय-सूची पृष्ठ तो कुत्तों तथा गधा आदि पशुओंको ३३५ भी उसकी प्राप्ति होती २९ यदि विषयोंके लोभी ज्ञानी पुरुषको ३३६ मोक्ष होता तो फिर दस पूर्व का पाठी रुद्र नरक क्यों गया? ३०-३१ विषयोंसे विरक्त जीव नरकोंकी ३३६ वेदनाको दूर कर अरहंत पदको प्राप्त होता है ३२-३३ ३३३-३३७ सम्यग्दर्शनादि पंचाचार पवनसहित अग्निके समान पुराने कोको ३३७ भस्म कर देते हैं ३४ विषयोंसे विरक्त जीव ही सिद्ध गतिको प्राप्त होते हैं ३५ ३३७ गाधा शीलवान् मनुष्य ही महात्मा बनता है सम्यग्दर्शनकी महिमा शीलरूपी सलिल से स्नान करनेवाले जीव ही सिद्धालयके ३३७ सुखको प्राप्त होते है ३८ आराधनाओंको प्रकट करनेवाले कौन होते है? ३३८ । सम्यग्दर्शन तथा शील ही ज्ञान है ४० मनुष्य तुच्छ होते हैं उत्तम शीलके धारक मुनियोंका जीवन सुजीवन है जीवदया, इंद्रियदमन आदि शीलका परिवार है शील मोक्षका सोपान है विषय, विषसे भी अधिक दुःखदायक हैं विषयासक्त जीव चारों गतियोंमें दुःख भोगते हैं तप और शीलके धारक मनुष्य विषय ओर विषको खलके समान नष्ट कर देते हैं शील ही सबमें उत्तम है विषयी जीव अरहटकी घड़ीके समान संसारमें घूमते रहते हैं ज्ञानी जीव, तप संयम और शीलके द्वारा ही कर्मोकी गाँठको खोलते हैं जिस प्रकार जलसे समुद्रकी शोभा है उसी प्रकार शीलसे मनुष्यकी शोभा है यदि शीलके बिना मोक्ष होता ३३९ ३४० पृष्ठ २४ २५ ३३७ ३४० ३४० २६ २७ ३४० -A ३४० २८ ३४० बारसणुवेक्खा (द्वादशानुप्रेक्षा) गाथा २६ गाथा पृष्ठ मंगलाचरण और प्रतिज्ञावाक्य १ ३४५ बारह अनुप्रेक्षाओं के नाम २ ३४५ अध्रुव अनुप्रेक्षा ३- ७ ३४५-३४६ अशरण अनुप्रेक्षा ८-१३ ३४६-३४७ एकत्व अनुप्रेक्षा १४-२० ३४७-३४८ अन्यत्वानुप्रेक्षा २१-२३ ३४८ संसारानुप्रेक्षा २४ ३४९ द्रव्यपरिवर्तनका स्वरूप क्षेत्रपरिवर्तनका स्वरूप | कालपरिवर्तनका स्वरूप | भवपरिवर्तनका स्वरूप | भावपरिवर्तनका स्वरूप जो जीव पापबुद्धिसे स्त्रीपुत्रादि के निमित्त धन अर्जित करता है पृष्ठ ३४९ ३४९ ३४९ ३४९ ३५० २८ २९
SR No.009555
Book TitleKundakunda Bharti
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year2007
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size92 MB
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