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कुंदकुंद-भारती
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अठ्यासी जो स्वयं गुणहीन होकर अधिक गुणवालोंसे अपनी विनय कराता है वह अनंत संसारी है ६६ हीन गुणवाले मुनियोंकी वंदना
आदि करनेवाला मुनि मिथ्यादृष्टि तथा चारित्रसे भ्रष्ट है ६७ मुनिको असत्संगसे बचना चाहिए ६८ लौकिक मनुष्यका लक्षण ६९ यदि दुःखसे छुटकारा चाहते हो
तो गुणाधिक या गुणसमान मुनिका सत्संग करो
७० संसारतत्त्वका स्वरूप
७१ मोक्षतत्त्वका स्वरूप मोक्षतत्त्वका साधन तत्त्व शुद्धोपयोगी मुनियोंका लक्षण ७३ शुद्धोपयोगी मुनियोंको नमस्कार ७४ शास्त्रका फल तथा ग्रंथका समारोप
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नियमसार
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गाथा
जीवाधिकार मगलाचरण और प्रतिज्ञावाक्य १ मोक्षमार्ग और उसका फल नियमसार पदकी सार्थकता नियम और उसका फल व्यवहार सम्यग्दर्शनका स्वरूप अठारह दोषोंका वर्णन परमात्माका स्वरूप आगम और तत्त्वार्थका स्वरूप तत्त्वार्थों का नामोल्लेख ९ जीवका लक्षण तथा उपयोगके भेद स्वभावज्ञान और विभाव ज्ञानका विवरण सम्यग्विभाव ज्ञान और मिथ्या विभाव ज्ञानके भेद दर्शनोपयोगके भेद विभाव दर्शनोपयोगके भेद विभाव पर्याय और स्वभाव पर्यायका विवरण मनुष्यादि पर्यायोंका विस्तार १६-१७
गाथा आत्माके कर्तृत्व-भोक्तृत्वका वर्णन
१८ द्रव्यार्थिक और पर्ययार्थिक नयसे जीवकी पर्यायोंका वर्णन १९
अजीवाधिकार पुद्गल द्रव्यके भेदोंका कथन २० स्कंधोंके छह भेद
२१-२४ कारणपरमाणु और कार्य परमाणुका लक्षण
२५ परमाणुका लक्षण
२६ परमाणुके स्वभावगुण और विभावगुणका वर्णन २७ पुद्गलकी स्वभाव और विभाव पर्यायका वर्णन
२८ परमाणुमें द्रव्यस्वरूपताका वर्णन धर्म, अधर्म और आकाश द्रव्यका लक्षण व्यवहार कालका वर्णन (भूतकाल का वर्णन) ३१
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