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विषय-सूची
तिरासी
सुख है
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गाथा आत्माकी रागद्वेषरूप परिणति ही बंधका कारण है रागादिकका अभाव होनेसे केवलीकी धर्मोपदेश आदि क्रियाएँ वंधका कारण नहीं हैं ४४ ।
अरहंत भगवान्के पुण्यकर्मका उदय बंधका कारण नहीं है ४५ केवलियोंकी तरह सभी जीवोंके स्वभावका घात नहीं होता ४६ अतींद्रिय ज्ञान सबको जानता है ४७ जो सबको नहीं जानता वह एकको भी नहीं जानता
४८ जो एकको नहीं जानता वह सबको नहीं जानता क्रमपूर्वक जाननेसे ज्ञानमें सर्वगतपना सिद्ध नहीं होता ५० युगपत् जाननेवाले ज्ञानमें ही सर्वगतपना होता है
५१ केवलीके ज्ञानक्रिया होनेपर भी 'बंध नहीं होता
अमूर्तिक और मूर्तिक ज्ञान तथा सुखकी हेयोपादेयता अतींद्रिय सुखका कारण अतींद्रिय ज्ञान उपादेय है इंद्रियसुखका कारण इंद्रियज्ञान हेय है इंद्रियोंकी अपने विषयमें भी एक साथ प्रवृत्ति होना संभव नहीं है ५६ इंद्रियज्ञान प्रत्यक्ष नहीं है ५७ परोक्ष और प्रत्यक्ष ज्ञानका लक्षण ५८ अतींद्रिय प्रत्यक्ष ज्ञान ही निश्चय सुख है अनंत पदार्थोंका जानना केवलज्ञानीको खेदका कारण नहीं है ६० केवलज्ञान सुखरूप है ६१ केवलज्ञानियोंके ही परमार्थिक
गाथा पृष्ठ
६२ १४५ परोक्षज्ञानियोंका इंद्रियजन्य सुख अपारमार्थिक है
६३ १४५ इंद्रियाँ स्वभावसेही दुःखरूप हैं ६४ १४५ शरीर सुखका साधन नहीं है ६५-६७ १४५-१४६ ज्ञान और सुख आत्माका स्वभाव है
१४६ शुभोपयोगीका लक्षण ६९ १४७ इंद्रियजन्य सुख शुभोपयोगके द्वारा साध्य है इंद्रियजन्य सुख यथार्थमें दुःख ही है
१४७ शुभोपयोग और अशुभोपयोगमें समानता
१४७ शुभोपयोगसे उत्पन्न हुआ पुण्य दोषाधायक है शुभोपयोग पुण्य दुःखका
१४८ पुण्य दुःखका बीज है
१४८ पुण्यजनित सुख वास्तवमें दुःखरूप ही है।
१४८ पुण्य और पापमें समानता न माननेवाला घोर संसारमें भ्रमण करता है
७७ १४८ रागद्वेषको छोड़नेवाला ही दुःखोंका क्षय करता है ७८ १४९ मोहादिके उन्मूलनके बिना शुद्धताका लाभ नहीं होता ७९ १४९ मोहके नाशका उपाय ८०-८३ १४९-१५० बंधके कारण होनेसे रागद्वेष नष्ट करनेके योग्य हैं ८४ मोहके लिंग जानकर उसे नष्ट करनेका उपदेश मोहक्षयका अन्य उपाय जिनप्रणीत शब्दब्रह्ममें पदार्थोंकी व्यवस्था
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कारण है
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